आज की इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में शारीरिक तनाव से कहीं ज़्यादा मानसिक तनाव हमारे समाज और खुद की सेहत के लिए खतरा साबित हो रहा है। एक-दूसरे से आगे जाने की होड़ में हम सब एक-दूसरे से और यहां तक कि खुद से भी अलग-थलग हो गए हैं।
आइए इसे समझते हैं दो व्यक्तियों के संवाद के एक दृश्य के ज़रिये-
क्या हाल चाल भाई, क्या चल रहा है आजकल?
क्या बताऊं यार? ठीक ही है, बस थोड़ा दिमाग ठीक नहीं है, बहुत परेशान हूं।
क्यों क्या हुआ? बताओ मुझे, क्या परेशानी है?
बस यही तो समझ नहीं आ रहा मेरे दोस्त कि असल में परेशानी है क्या? छोड़ो हटाओ तुम बताओ कैसे हो?
इस बातचीत के ज़रिये इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हम सब ऐसी ज़िन्दगी की भेड़चाल का हिस्सा हो गए हैं।
सुशांत ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रहे धोनी की ऑटोबायोग्राफी पर बनी फिल्म एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी में भी धोनी के किरदार को पर्दे पर जीवंत किया और लोगों ने उनके इस अवतार को भी दिल खोल कर पसंद किया, इस फिल्म के लिए इनके अभिनय की चारों तरफ चर्चाएं हुई।
धोनी का यादगार और पी.के. फिल्म के हंसमुख सरफ़राज़ का रोल निभाने वाला सुशांत इस तरह अचानक इस दुनिया को अलविदा कह देगा, यह किसी ने अपने सपने में भी नहीं सोचा था। सुशांत ने किन कारणों की वजह से आत्महत्या की, यह अभी तक किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है।
फैन्स के साथ-साथ परिवार भी बुरी तरह टूटकर बिखर गया
देश के बाकी लोग और उनके फैन्स को जितना झटका लगा है उससे कहीं अधिक सुशांत के जाने के बाद उनके परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट चुका है, ज़ाहिर सी बात है कि किसी परिवार के एकलौते पुत्र का इस तरह अचानक से दुनिया को अलविदा कहना उस परिवार के लिए इस दुःख से उबरना आसान बात नहीं है। उनकी भाभी इस सदमे को सह नहीं सकी और उन्होंने ने भी इस दुनिया को छोड़ कर जाने का फैसला ले लिया, जिससे उनके परिवार के सामने दुःखों का दोहरा पहाड़ टूट पड़ा है।
ऐसी खबरें भी आ रही है कि सुशांत की मौत का उनके फैन्स पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है और उनके फैन्स इस सदमे को सह नहीं पाए इसी के चलते उनके दो फैन्स ने भी आत्महत्या कर ली, जिसमें से एक नाबालिग उम्र का युवा था।
अपने सपनों की दुनिया के कुछ सपने पूरे कर चुके थे सुशांत
सवाल यह है कि आखिर क्यों? सुशांत जो कि एक बहुत ही शांत और कमाल के अभिनेता होने के साथ-साथ एक बेहद ऊर्जावान व्यक्ति थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में अपनी डायरी में लिखे वो 50 सपनों के पन्नों को दुनिया के सामने रखा था।
उसमें लिखे एक-एक सपने को वो पूरा करना चाहते थे, जिसमें से लगभग 11
सपने वे पूरे भी कर चुके थे। लेकिन फिर सवाल यही है कि आखिर किन समस्याओं
के चलते उन्होंने आत्महत्या के रास्ते को चुना? अपनी ज़िन्दगी की रेस में
अभी तक आगे रहते हुए अचानक इस तरह हार मान कर इस खूबसूरत सी दुनिया से बिना
किसी को बताये चुपके से चले जाना, उनकी ज़िन्दगी का दुःखद पहलू है।
सुशांत का चले जाना आत्महत्या है या सुनियोजित हत्या?
अभी तक पुलिस के अनुसार उनके रूम से कोई सुसाइड नोट या कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली, जिससे यह साबित हो सके कि मौत का कारण क्या है? इस केस की शुरूआती जांच में कहा जा रहा था कि सुशांत कुछ दिनों से डिप्रेशन में थे, इसलिए उनकी मौत का कारण डिप्रेशन ही हो सकता है, ऐसा कहा जा रहा है।
हीं, कुछ बॉलीवुड के लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि लगातार उनके हाथ से एक के बाद एक बड़े बैनर की फिल्मों का निकलना भी उनके मानसिक तनाव एवं मौत का कारण हो सकता है।
बॉलीवुड की अभिनेत्री कंगना रणौत ने भी एक वीडियो सन्देश जारी करते हुए सीधे फिल्म इंडस्ट्री पर ही आरोप लगाया और कहा कि ये कोई सुसाइड नहीं सुनोयोजित मर्डर (Planned Murder) था।
डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन आज के इस आधुनिक दौर में एक महामारी की शक़्ल ले चुका है। हमारे समाज में यह आम हो गया है। सबसे ज्यादा डिप्रेशन यानि मानसिक रोग की चपेट में हमारे समाज के नौजवान युवा आ रहे हैं, जो कि एक बेहद चिंता की बात है।
डिप्रेशन बेहद गंभीर और सामान्य चिकित्सीय बीमारी बन चुका है। इससे ग्रसित लोगों के स्वास्थ्य पर इसका सीधा असर दिखाई पड़ता है, जिससे वो कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाते, उनका स्वभाव हमेशा चिड़चिड़ा एवं मन उदास रहता है। डिप्रेशन से ग्रसित लोगों को हमेशा नकारात्मक विचार आते हैं।
डिप्रेशन के कुछ सामान्य लक्षण
- हमेशा बुरा महसूस होना।
- किसी भी काम में फोकस्ड नहीं रह पाना।
- नींद नहीं आना या ज्यादा आना।
- हर गलती में खुद को दोषी समझना। लोगों के जजमेंट से डरना।
- अपने अन्दर चल रही बातों को दूसरे से साझा नहीं कर पाना। हमेशा सोचना की कोई खुद सुने लेकिन सुना भी नहीं पाना।
- हमेशा आत्मग्लानि में रहना।
- किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकना यानी फैसला नहीं कर पाना।
- हर छोटी परेशानी को बहुत बड़ा करके देखना।
- खुश नहीं रहते हुए भी हर किसी के सामने खुश दिखना।
- हमेशा मौत और आत्महत्या के बारे में सोचना।
यह डिप्रेशन के कुछ सामान्य लक्षण हैं जिनको देख कर हम किसी व्यक्ति के बारे में समझ सकते हैं कि वह व्यक्ति डिप्रेशन में है या हो सकता है। ऐसे लोगों को बेझिझक अपनी परेशानियों को अपने करीबी और मनोचिकित्सक को जरूर बताना चाहिए।
यह बीमारी इतनी बड़ी भी नहीं है कि खत्म नहीं हो, पर हां, अगर इसे छोड़ दिया जाये तो ये एक दिन विकराल रूप धारण कर सकती है।
समाज का नज़रिया
हमारे भारतीय समाज में लोग इस बात का बहुत ध्यान रखते हैं, कि कौन क्या बोल रहा है? कोई हमारे बारे में कैसा सोचता है ? उसी हिसाब से व्यक्ति एक- दूसरे को जज करते हैं। आज कल हमारे समाज का नजरिया एक-दूसरे के लिए बहुत अच्छा नहीं है, सब सिर्फ एक दूसरे के पैर खींचने की कोशिश में रहते हैं।
हम अपनी काबिलियत और तरक्की को दूसरों के नज़रिये से देखना पसंद करते हैं, जो कि मेरे विचार से गलत है। आपको अपने काम और मेहनत पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए, तभी आप एक सफल इंसान बन सकते हैं।
मेरे बचपन की एक घटना
बात लगभग 10 वर्ष पुरानी है जब मैं 12-13 वर्ष का रहा होऊंगा। मेरे गांव के ही एक भैया जो कि पढ़ने में बहुत अच्छे थे। पहले गांव में पढ़ाई को लेकर इतनी जागरूकता नहीं थी जितनी आज है। लेकिन हां, जितने भी पढ़ने वाले लोग हुआ करते थे, उन सबमें पढाई को लेकर जबरदस्त प्रतियोगिता रहती थी।
जैसा की मैंने बताया कि वह पढने में अच्छे थे। उनके मोहल्ले के लड़कों ने उनको चिढ़ाना शूरू कर दिया कहने लगे कि पढ़ते पढ़ते यह पागल हो गया है (जैसा की गांव में अक्सर बच्चों और बुजुर्गों के साथ कुछ शैतान लोग किया करते हैं)।
लोगों ने किस तरह उसे तनाव का आदी बना दिया
उन्होंने इन बेवजह की बातों को इतना सीरियस ले लिया कि सचमुच उन बातो ने उनकी मानसिक स्थिति को ही बिगाड़ के रख दिया, जिसका नतीजा यह हुआ की वह डिप्रेशन के शिकार हो गए।
लोगों की बेफिज़ूल की बातों ने एक अच्छे भले योग्य विद्यार्थी का जीवन बर्बाद कर दिया, जब उनके पिता उन्हें गांव से शहर लेकर चले गए तब जाकर उनकी मानसिक हालात ठीक हो सकी।
समाज भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार है युवाओं को इस माहौल में धकेलने के लिए
आखिरकार समाज के लोगों की इस तरह बेवजह की बातों से एक लड़के की ज़िन्दगी पर कितना गलत प्रभाव पड़ा जरा सोचिए, जो पहले से ही किसी कारणवश डिप्रेस्ड हैं उनको हमारा समाज एक स्वस्थ व्यक्ति या एक बीमार व्यक्ति के रूप में लेता होगा?
मैंने कई बार मानसिक रोग से ग्रसित लोगों के बारे में कहते सुना है कि वह पागल हो गया, उसे कुछ नहीं हुआ, नाटक कर रहा है, ज़्यादा पढ़ लिया है इत्यादि।
जबकि समाज को चाहिए की ऐसे लोगों से अच्छे से बात करें, उनकी परेशानी सुने, समझे और उनको भरोसा दिलाएं कि सब ठीक हो जएगा। ऐसे लोग कुछ नहीं सिर्फ आपसे दो पल प्यार के चाहते हैं।
डिप्रेशन का इलाज समाज में ही है
हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक इसी समाज में रहते हैं। बीमारी भी यहीं होती है और इलाज़ भी। मैंने शुरू में एक पंक्ति लिखी है जिसमें मैं यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि हमने अपने समाज को परिवर्तित करने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही गड़बड़ कर दी है।
आज हम सब अपने समाज और परिवार को पीछे छोड़ कर इस चमकती हुई दुनिया के पीछे भागने लगे हैं, जहां इंसान को इंसान की तरह नहीं रोबोट की तरह देखा एवं इस्तेमाल किया जा रहा है।
ज़िंदगी में कुछ वक्त निकालकर अपनों से बातें करते रहिये
सुशांत की मौत की खबर मिलने के बाद करण जौहर ने कहा कि उनकी मौत का ज़िम्मेदार मैं हूं जब इसको ज़रूरत थी तब मैं इसके साथ नहीं रह सका यानी मैंने बात नहीं की।
ऐसा ही एक वीडियो भावुक होते हुए अनुपम खेर ने भी साझा किया था, उसमें उन्होंने कहा था और सब से यही गुज़ारिश कर रहे थे कि आप दुनिया में इतने व्यस्त न हो जाएं कि खुद को और अपने रिश्तों को ही भूल जाएं। इसलिए हमेशा जो आपके अपने हैं, हमेशा आपके आस-पास रहते हैं उनसे बात करते रहिए।
वर्तमान में व्यावसायिक रिश्तों की नहीं, बल्कि भावनात्मक रिश्तों की ज़रूरत है
डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को उनके साथ हर वक्त उन्हें समझाने वाले, उनसे बातें करने वाले लोगों की आवश्यकता होती है। सिर्फ किसी से बात कर लेने भर से ही वह व्यक्ति बहुत अच्छा महसूस करता है।
आज के दौर में लोग एक-दूसरे से सिर्फ व्यावसायिक रिश्ते ही कायम कर पाते हैं, इंसानी रिश्ता कायम करने की कोशिश भी नहीं करते हैं। एक इंसान को इंसान समझना और उसको उसी तरह अपनाना बेहद ज़रूरी है।
डिप्रेस्ड लोगों को भी लगता है आप उन्हें अपने जैसा समझें, समाज में उन्हें अलगाव की भावना उन्हें हीन भावना से ग्रसित कर देती है।
आपके चंद शब्द किसी की ज़िंदगी बचा सकते हैं
डिप्रेस्ड लोग आत्महत्या तक पहुंच जाते हैं और लोग तुरंत ही कह देते हैं कि वह कायर था, डरपोक था, जो कि यह एकदम गलत है। यह बात कहने से अच्छा होगा कि आप अपने आस-पास, अपने जानने वाले लोगों से अच्छा और सच्चा रिश्ता कायम रखें और उनसे बातें करते रहें। शायद आप अनजाने में ही कितने लोगों की ज़िन्दगी बचा सकते हैं।
किसी नामचीन लोगों के बारे में तो हम आसानी से जान जाते हैं लेकिन प्रतिदिन हमारे आसपास न जाने कितने लोग अपने बहुमूल्य ज़िन्दगी को आत्महत्या करके खत्म कर रहे हैं, उसका क्या?
SOURCE ; youthkiawaaz
समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
अगर आपको यह कहानी पसंद आई तो इसे एक दोस्त के साथ साझा करें!
हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं। हमारी पत्रकारिता को सरकार और कॉरपोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए आर्थिक मदद करें।
0 Comments