पिछले दो महीने से अधिक से दिल्ली की सीमाओं पर किसान प्रदर्शन कर हैं, अब उनके समर्थन में दिल्ली के नागरिक समाज ने भी सड़क पर उतरकर अपना विरोध जताया।
उन्होंने अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च करने का आह्वान किया। हालांकि पुलिस ने उन्हें इस मार्च की अनुमति नहीं दी। ये आंदोलनकारी और हमारे जैसे पत्रकारों के लिए आजीब था। क्योंकि अमूमन मंडी हाउस से संसद मार्च पुलिस जाने देती है। लेकिन आज जिस तरह से पुलिस ने इस पूरे इलाकों को एक छावनी में बदल दिया था और मंडी हाउस के आसपास के सभी रास्तों की किलेबंदी करके बन्द किया था। वो सब एकदम नया था। जबकि इस मार्च में दिल्ली के छात्र, शिक्षक,मज़दूर, लेखक, वकीलों के साथ ही अन्य व्यापक समाज के लोगों को बड़ी संख्या में शामिल होना था।
पुलिस के इतने सख्त बंदोबस्त को देखते हुए प्रदर्शनकारियों ने मंडी हाउस के बाराखंबा रोड पर ही अपना धरना शुरू कर दिया और मार्च एक प्रतिरोध सभा में बदल गया।
इस मार्च का आह्वान छात्र संगठन आइसा, एसएफआई, एआईएसएफ, एमएसयूआई, एमएमएफ, सिवाइएसएस, नौजवान संगठन डीवाईएफआई, आरवाईए, महिला संगठन एडवा, ऐपवा, प्रगतिशील महिला संगठन, मज़दूर संगठन सीटू, एटक, ऐक्टू के साथ ही कई अन्य मज़दूर शिक्षक-छात्र, नौजवान और महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से किया था। इसके साथ ही लेखक और सांस्कृतिक संगठन जसम, जलेस, प्रलेस, दलेस और प्रतिरोध का सिनेमा जैसे संगठन भी इस मार्च से जुड़े।
इस मौके पर थियेटर आर्टिस्ट सविता ने कहा कि सरकार हर बार एक ही तरह की कहानी दोहराती है। जब भी कोई आन्दोलन होता है तो उसे दबाने के लिए बीजेपी अपने लोगो को भेजती है जो पुलिस के संरक्षण में हुड़दंग करते हैं, वो नारे लगाते हैं कि दिल्ली पुलिस तुम लठ बजाओ हम तुम्हारे साथ हैं। जो कि शर्मनाक है। पुलिस इन पर कार्रवाई करने की बात छोड़िए निंदा तक नहीं करती है।
उन्होंने कहा कि इसबार भी किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की गई
लेकिन इस बार यह कहानी फेल हो गई है। वे जनता को किसानों के ख़िलाफ़ खड़ा
करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हम यह बताने आए की हम किसानों के साथ हैं।
वैज्ञानिक और कवि गौहर रज़ा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा की आज कवि,
शिक्षक और छात्र मज़दूर किसानों के साथ अपनी एकजुटता जताने आए हैं।
उन्होंने आंदोलनकारियों को रोके जाने पर कहा यह सरकार का प्रतिरोध से डर दिखता है। वो हर उस आवाज़ को दबाना चाहती है जो उसके ख़िलाफ़ उठ रही है।
सिंघु बॉर्डर से पुलिस द्वारा गिरफ़्तार की गईं मज़दूर नेता नवदीप कौर की बहन भी इस अंदोलन मे शामिल हुई। उन्होंने बताया कि आज बहुत दिनों बाद उनकी फोन पर बात हुई है जिसमे नवदीप ने बताया कि उन्हें पुलिस हिरासत में पुरुष पुलिसकर्मी द्वारा प्रताड़ित किया गया है।
आपको बता दें कि हरियाणा में कुंडली इंडस्ट्रियल एरिया (केआईए) के ख़िलाफ़ प्रवासी मज़दूरों के लंबित वेतन के लिए 24 साल की नवदीप लगातार आवाज़ उठा रहीं थीं। केआईए सिंघु बॉर्डर से सटा सोनीपत का इलाका है। नवदीप को 12 जनवरी को पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। तब से वह जेल में हैं।
नवदीप की बहन ने कहा उनकी गिरफ्तारी इसलिए हुई क्योंकि वो मज़दूरों के न्यूनतम वेतन मिले इसके लिए संघर्ष कर रही थी जिसे पुलिस ने उगाही बताकर उन्हे जेल में डाल दिया। लेकिन वो इससे डरने वाले नहीं हैं।
मज़दूर संगठन सीटू के नेता पुष्पेन्द्र ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा मैं पिछले 35 सालों से जनांदोलन का हिस्सा हूं लेकिन यह पहली बार है जब पुलिस हमे मंडी हाउस से जंतर मंतर जाने से रोक रही है। ये अभूतपूर्व है, सरकार सोचती है कि वो आंदोलनकारियों को इससे डरा लेगी लेकिन वो नहीं जानते सरकार का दमन जितना तेज़ होगा उससे तेज़ उसका विरोध होगा।
जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइसी घोष ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि आज देश और दिल्ली का छात्र किसानों के साथ हैं। हम दिल्ली पुलिस की निंदा करते हैं जैसे वो विरोध कर रहे किसानों और सच दिखा रहे पत्रकारों को जेल में डाल रही है। हम इसकी निन्दा करते हैं और मांग करते हैं कि सभी को तुरन्त रिहा किया जाए।
स्वतंत्र पत्रकार दिलीप खान जो इस अंडोलन मे शामिल होने आ रहे थे। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए पुलिस के रवैये की निंदा की। उन्होंने कहा कि अब सरकार किस तरह किसानों की मांगों पर टाल मटोल कर रही है, जिससे पता चलता है कि सरकार किसानों को लेकर बहुत चिंतित है।
उन्होंने कहा कि पुलिस जिस तरह से अपना काम कर रहे पत्रकारों को रोक रही है, वो ठीक नहीं है। पुलिस ने मनदीप पर जो आरोप लगाया है कि वो पुलिस के काम मे बाधा पहुंचा रहे थे जबकि सच्चाई यह है कि पुलिस उनके काम में बाधा पहुंचा रही थी। वो उनके स्वतंत्र रिपोर्टिंग के अधिकार पर हमला था।
इस विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों ने मुख्यतौर पर तीन नए कृषि कानूनों की वापसी की मांग रखी और इसे कंपनी राज से जोड़ा और कहा कि आज़ाद हिन्दुस्तान में एकबार फिर कंपनी राज लाने की कोशिश है।
दूसरा उन्होंने साफ किया कि सरकार आंदोलनकारियों को डराने और किसानो के पक्ष में लिखने और बोलने वाले पत्रकारों को जैसे गिरफ़्तार कर रही है, वो बिल्कुल गलत है। पुलिस सभी गिरफ़्तार किसान और पत्रकारों को तुरंत रिहा करे।
- आपको बता दें कि दिल्ली के बॉर्डर पर तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में
आंदोलन जारी है। अब पुलिस ने किसानों के प्रदर्शन स्थलों और उसके आसपास कई
स्तर की अवरोधक लगा दिए हैं। सड़कों पर लोहे की कीलें, कंटीले तार, सीमेंट
के अवरोधकों के बीच लोहे की छड़ें लगाने, खाई खोदने के साथ ही डीटीसी बसों
एवं अतिरिक्त सुरक्षा कर्मियों की तैनाती जैसी भारी सुरक्षा व्यवस्था की
गयी है ।यहां तक कि इस आंदोलन को कवर कर रहे मीडियाकर्मियों को प्रदर्शनस्थलों
पर पहुंचने में मुश्किल आ रही हैं क्योंकि उन्हें पहले चेकिंग और फिर कई
स्तर की अवरोध व्यवस्था से गुजरना पड़ रहा है। सरकार और प्रशासन ने आंदोलनकारियों का हौसला तोड़ने के लिए बिजली कटौती,
पानी और साफ-सफाई को रोकने का भी काम किया है। इन सब समस्याओं का सामना कर
रहे किसानों की लिए राहत की बात यह है कि स्थानीय लोग उनकी मदद कर रहे
हैं। स्थानीय लोग किसानों को बिजली से लेकर अपने घरों के शौचालयों तक के
इस्तेमाल की इजाजत दे रहे हैं। (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)
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