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कोयला आधारित बिजली इकाइयों से प्रदूषण और बच्चों एवं महिलाओं की एनीमिक स्थिति

 

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Sourangsu Chowdhury

Indian Institute of Technology Delhi

sourangsuchowdhury@gmail.com

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Sagnik Dey

Indian Institute of Technology Delhi

sagnik@cas.iitd.ac.in

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Nidhiya Menon

Brandeis University

nmenon@brandeis.edu

स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को व्‍यापक रूप से शोध-साहित्य में जगह मिली है। जहां अन्य अध्ययनों में मुख्य रूप से सामान्य रुग्णता और मृत्यु दर जैसे परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, यह लेख भारत में छोटे बच्चों और प्रौढ़ उम्र की महिलाओं की एनीमिक स्थिति पर कोयला आधारित बिजली इकाइयों द्वारा पड़ने वाले प्रदूषण के प्रभाव का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इन अतिरिक्त लागतों के जुड़ जाने से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर प्रगतिशील बदलाव और कोयले पर निर्भरता कम करने का मामला मजबूत होता है।

 

स्वास्थ्य के विभिन्न मापों पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव अब काफी अच्छी तरह से प्रलेखित हैं (उदाहरण के लिए, ज़िविन एवं नेईडल 2013, ग्रीनस्टोन एवं जैक 2015 देखें)। जबकि शुरुआती साक्ष्य विकसित देशों से आए थे, लेकिन हाल ही में विकासशील देशों के आंकड़ों का उपयोग करने वाला साहित्य उससे भी खराब तस्वीर प्रस्‍तुत करते हैं। भारत के लिए यह विशेष रूप से सच है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) के अनुसार 2008-2017 की अवधि में वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस में दुनिया के 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में हैं (16 भारतीय उप-महाद्वीप में हैं)।

हमारे हाल के शोध (दत्त एवं अन्‍य 2020) में हम विकासशील देशों के संदर्भ में छोटे बच्चों और प्रौढ़ उम्र की महिलाओं में एनीमिक (रक्‍त की कमी) स्थिति पर कोयला आधारित बिजली इकाइयों द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषण के प्रभाव की जांच करते हैं। हम उन तंत्रों में अंतर्दृष्टि भी प्रदान करते हैं जिनके माध्यम से कोयले के संपर्क में आने से एनीमिया (रक्‍त की कमी) होती है। जबकि अन्य स्वास्थ्य परिणामों पर कोयले के प्रभाव का साहित्य में अध्ययन किया गया है, हमारे शोध की विशेषता यह है कि इसमें एनीमिया पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो कि एक व्यापक रूप से मान्यता-प्राप्त और महत्वपूर्ण स्वास्थ्य स्थिति है।

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भारत में एनीमिया की गंभीरता

भारत में बच्चों और वयस्कों में एनीमिया एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2016 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों और 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु महिलाओं की वैश्विक एनीमिया दर क्रमशः 41.7% और 32.8% थी, जबकि इसकी तुलना में भारत के लिए आंकड़े 59% और 54% थे, जो भारत में इस समस्या की अधिक गंभीरता को रेखांकित करता है।

हम आकृति 1 में बच्चों (0-5 वर्ष की आयु के) और महिलाओं (18-49 वर्ष की आयु की) के लिए एनीमिया की दरों में जिला-स्तरीय भिन्नता प्रस्तुत करते हैं। आकृति 1 के दोनों पैनलों में गहरे रंग के छायांकित जिले उच्च एनीमिया दर वाले जिलों का प्रतिनिधित्व करते हैं (एनीमिया के लिए देहली आंकड़ों का विवरण नीचे टिप्‍पणियों में दिया गया है)।

आकृति 1. 2015-16 में रक्‍त की कमी वाले बच्चों (0-5 वर्ष की आयु के) और महिलाओं (18-49 वर्ष की आयु की) का अनुपात

स्रोत: 2015-2016 के लिए भारत के जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखकों की गणना के आधार पर।

टिप्‍पणियां: i) आकृति 1 में बायां पैनल प्रत्येक जिले में एनीमिक के रूप में वर्गीकृत बच्चों (0-5 वर्ष की आयु के) के अनुपात के भारित औसत को प्रस्तुत करता है, जोकि 6 - 59 महीने की उम्र के बच्चों में ऊंचाई समायोजित हीमोग्लोबिन सांद्रता (HBA) < 11.0 g / dl है। श्रेणी 0-0.25 दर्शाती है कि जिले के 25% बच्चे एनीमिक हैं, और इसी प्रकार। ii) आकृति का दायां पैनल प्रत्येक जिले में एनीमिक के रूप में वर्गीकृत महिलाओं के अनुपात (18-49 वर्ष की आयु) के भारित औसत को प्रस्‍तुत करता है, जोकि गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए ऊँचाई समायोजित हीमोग्लोबिन सांद्रता (HBA) < 12.0 g / dl और गर्भवती महिलाओं के लिए HBA< 11.0g / dl है। श्रेणी 0-0.25 दर्शाती है कि जिले में 25% महिलाएं एनीमिक हैं, इत्यादि।

दो स्थानिक मानचित्रों में एक उल्लेखनीय समानता है - महिलाओं के लिए उच्च (या निम्न) एनीमिया वाले क्षेत्रों में बच्चों की एनीमिया दर भी उच्च (या निम्न) है। हालांकि यह आंशिक रूप से आयरन की कमी और माता से बच्‍चे में कम हीमोग्लोबिन के संचरण के साथ एनीमिया की वंशानुगत प्रकृति के कारण हो सकता है (जिसे हम अपने अनुभवजन्य विश्लेषण में नियंत्रित करते हैं), पर हम परिकल्पना करते हैं कि मुख्य रूप से यह स्थान संबंधी कोयला इकाइयों जैसे कारकों से उत्सर्जन के कारण होने वाले प्रदूषण को दर्शाता है।

हमारा मुख्‍य उद्देश्‍य एनीमिया की घटनाओं के संदर्भ में कोयला आधारित बिजली उत्पादन और उससे जुड़े वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को समझना है। हम बच्चों और महिलाओं की एनीमिया की स्थिति पर कोयला-प्रेरित प्रदूषण के प्रभावों की जांच करने के लिए समय पर एक बिंदु पर कोयला इकाइयों की उपस्थिति और एक विशिष्ट अवधि में कोयला इकाइयों की संख्या में परिवर्तन का उपयोग करते हैं। पिछले तीन दशकों में भारत में तेजी से आर्थिक विकास हुआ है, जिसने बिजली की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि में योगदान दिया है और इसमें 150% की वृद्धि हुई है - 2001 में 388 टेरा वाट घंटे (TWh) से बढ़कर 2015 में 989 टेरा वाट घंटे (अली 2018)। देश ने इस मांग को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से कोयला आधारित बिजली इकाइयों का निर्माण किया है। बिजली इकाइयों और उनकी क्षमता के संबंध में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) से प्राप्त आंकड़े बिजली उत्‍पादन करने वाली सभी इकाइयों के चालू होने का वर्ष (1922-2016), इन इकाइयों के लिए ईंधन का मुख्य स्रोत (कोयला, गैर-कोयला -डीजल एवं तेल, जलविद्घुत्व और परमाणु ऊर्जा), प्रत्येक इकाई की क्षमता, और प्रत्येक इकाई के स्थान के जिले के बारे में जानकारी उपलब्‍ध कराते हैं। आकृति 2 से पता चलता है कि भले वर्ष 2000 के बाद की अवधि में जलविद्घुत्व और गैर-कोयला चालित इकाइयों की कुल क्षमता में मामूली वृद्धि हुई है, पर कोयला-संचालित इकाइयों से उत्पन्न कुल क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई है, खासकर पिछले 10 वर्षों में।

आकृति 2. ईंधन प्रकार के अनुसार बिजली उत्पादन इकाइयों की कुल क्षमता; 1922-2016

टिप्‍पणी: लेखकों द्वारा की गई गणना सीईए आंकड़ों के आधार पर है ।

आकृति में आए अंग्रेज़ी शब्दों के अर्थ:

Total capacity – कुल क्षमता

Coal – कोइला

Non-coal – गैर-कोइला

Hydro - जल

Nuclear - परमाणु

कोयला आधारित बिजली उत्पादन का एनीमिया पर प्रभाव

2015-2016 में एकत्र किए गए सबसे हाल के डीएचएस आंकड़ों को सभी बिजली इकाइयों के स्थान और वर्ष के आंकड़ों के साथ मिला कर उपयोग करते हुए हम पाते हैं कि बच्‍चे के जन्म (जन्म का महीना और वर्ष) के समय पर जिले में कोयला इकाइयों की संख्या और सर्वेक्षण के समय 0-5 वर्ष की आयु के बच्चों के नमूने में एनीमिक होने की संभावना में उल्लेखनीय वृद्धि आपस में जुड़ी हुई हैं। आकृति 3 के बाएं पैनल में ये परिणाम दर्शाये गए हैं। बच्चे के जन्म के समय जिले में एक अतिरिक्त कोयला इकाई स्थापित होने से बच्चों में ऊंचाई समायोजित हीमोग्लोबिन (एचबीए) सांद्रता में लगभग 0.06 ग्राम/डेसीलीटर की एक बड़ी कमी से संबन्धित है, और उसी प्रकार बच्चे के एनीमिक होने की संभावना में एक प्रतिशत की वृद्धि से भी जुड़ा हुआ है। यह देखते हुए कि औसतन इस आयु वर्ग के बच्चे के एनीमिक होने की संभावना 59% है, जन्म के समय जिले में एक अतिरिक्त कोयला इकाई का स्थापित होना इस संभावना को 1.69% बढ़ा देता है। यह आंकड़ा यह भी दर्शाता है कि कोयला संयंत्र इकाइयों के कारण बच्चों पर होने होने वाले एनीमिया प्रभाव मुख्य रूप से मध्यम या गंभीर एनीमिया में वृद्धि के कारण बनते हैं (एनीमिया श्रेणियों के लिए देहली आंकड़ों का विवरण नीचे टिप्‍पणियों में दिया गया है)। आकृति 3 के दाएं पैनल से पता चलता है कि महिलाओं के लिए एचबीए स्तरों के लिए प्रभाव कमजोर हैं, लेकिन जिले में एक अतिरिक्त कोयला संयंत्र उन महिलाओं के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि करता है जो कम एनीमिक हैं।

आकृति 3. कोयला बिजली इकाइयों की संख्या और एनीमिया, बच्चे (0-5 वर्ष की आयु) और महिलाएं (18-49 वर्ष की आयु)

 

टिप्‍पणी: 0-5 वर्ष की आयु के बच्चों के मामले में उनके जन्‍म के समय और सर्वेक्षण के समय 18-49 वर्ष की महिलाओं (खड़ी पट्टियां) हेतु जिले में कोयला संयंत्रों की संख्‍या का अनुमानित प्रभाव तथा 90% विश्वास अंतराल 1 (मोटी रेखाएं) में प्रस्तुत किया गया है। परिणामों का पूरा सेट दत्त एवं अन्‍य (2020) की तालिका 4 और 5 में प्रस्तुत किए गए है। आकृति 1 में बताई गई एनीमिया के रूप संबंधी श्रेणियों का संदर्भ लें। बच्चों के लिए हल्के एनीमिया को 10.0-10.9 g/dl के एचबीए, गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए 10.0-11.9 g/dl और गर्भवती महिलाओं के लिए 10.0-10.9 g/dl के रूप में निर्धारित किया गया है। मध्यम एनीमिया हेतु बच्चों और महिलाओं दोनों के लिए 7.0-9.9g/dl के एचबीए की देहली सीमाओं का उपयोग किेया गया है, और गंभीर एनीमिया को महिलाओं एवं बच्चों के लिए एचबीए 7.0 g/dl से कम निर्धारित किया गया है।

आकृति में आए अंग्रेज़ी शब्दों के अर्थ:

Proportion – अनुपात

HBA – एचबीए (ऊंचाई समायोजित हीमोग्लोबिन)

Mild – हल्का

Moderate/severe – मध्यम/ गंभीर

Anemia – एनीमिया

आकृति 4 विभिन्न उप-प्रतिदर्शों के लिए बच्चों की एनीमिक स्थिति पर उनके जन्म के समय जिले में कोयला संयंत्रों की संख्या में वृद्धि के प्रभाव को प्रस्तुत करता है।

आकृति 4. जन्म के समय जिले में कोयला इकाइयों के प्रभावों में भिन्नता, 0-5 वर्ष की आयु के बच्चों की एनीमिया स्थिति

 

टिप्‍पणी: जन्म के समय जिले में कोयला संयंत्रों की संख्या का अनुमानित प्रभाव (खड़ी पटि्टयां) और प्रत्येक उप-नमूने के लिए प्रस्तुत 90% विश्वास अंतराल (ठोस रेखाएं) प्रस्‍तुत किए गए हैं।

आकृति में आए अंग्रेजी शब्‍दों के अर्थ:

Gender - लिंग

Region - क्षेत्र

Rural/Urban - ग्रामीण/शहरी

Mother works - कामकाजी माता

Mother’s Height - माता की ऊंचाई

Boys - लड़के

Girls - ल‍ड़कियां

South - दक्षिण

Non-South - गैर-दक्षिण

Rural - ग्रामीण

Urban - शहरी

Category - श्रेणी

Above Median - माध्यिका से ऊपर

Below Median - माध्यिका से नीचे

Proportion - अनुपात

इसका प्रभाव लड़कियों, काम-काज नहीं करने वाली माताओं के बच्‍चों, खराब स्वास्थ्य वाली माताओं (माध्यिका ऊंचाई से कम), और ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली माताओं पर अधिक पड़ता है। इसके अतिरिक्त अन्‍य सांख्यिकीय परीक्षणों के माध्यम से हम पाते हैं कि बिजली उत्पादन के गैर-कोयला स्रोतों का 0-5 वर्ष के बच्चे के एनीमिक होने की कम संभावना पर साफ प्रभाव दिखाई पड़ता है।

तीन अन्य परिणाम ध्यान देने योग्य हैं। पहला – कोयला इकाइयों का संचयी जोखिम (जन्म के बाद से कोयला संयंत्र के संपर्क में आने वाले कुल वर्षों के रूप में मापा गया है) भी किसी बच्चे के एनीमिक होने की संभावना पर उल्लेखनीय वृद्धि के साथ स्वतंत्र रूप से संबन्धित है। दूसरा - गर्भावस्था के दौरान संपर्क भी मायने रखता है। जिन बच्चों को अपनी माता के गर्भ में पहली या दूसरी तिमाही में कोयला इकाइयों के कारण पर्यावरणीय दुष्‍प्रभाव झेलना पड़ा, उनमें से 0-5 वर्ष की आयु में एनीमिक होने की संभावना अधिक रही है। तीसरा - बच्‍चे की एनीमिक स्थिति पर कोयले के हानिकारक प्रभाव जनसंख्‍या द्वारा सामना की जाने वाली केवल पोषण संबंधी चुनौतियों को नहीं दर्शाते हैं। इसका कारण यह है कि कोयला इकाइयों के प्रभाव पर बच्चे के एनीमिक स्थिति और एचबीए स्तरों के प्रभाव का परिमाण लगभग समान है, ऐसा यदि हम केवल उन बच्चों के प्रतिदर्श पर विचार करते हैं जो अविकसित हैं, अर्थात, जिन्‍होंने इन कम आयु वाली अवस्थाओं में पोषण संबंधी अभाव का अनुभव किया है।

चैनलों की ओर मुड़ते हुए हम पाते हैं कि कोयला इकाइयों से होने वाला उत्‍सर्जन 2.5 माइक्रोमीटर (PM2.5) आकार के कणों की स्थानीयकृत सांद्रता वृद्धि के साथ मजबूती से (और सकारात्मक रूप से) सहसंबद्ध होता है जो सबसे हानिकारक वायुवाहित प्रदूषकों में से एक है। हम पाते हैं कि औसत PM2.5 सांद्रता में वृद्धि कोयला इकाइयों की संख्या में वृद्धि के साथ जुड़े एनीमिया पर प्रतिकूल परिणामों हेतु प्राथमिक चैनल है; PM2.5 सांद्रता की शर्त पर कोयला संयंत्र प्रभाव अब महत्वपूर्ण नहीं है। कुल मिला कर, हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि भारत में कोयले से बिजली का बढ़ता हुआ उत्‍पादन बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य की बड़ी कीमत पर घटित हो रहा है।

विचार-विमर्श

यद्यपि मौजूदा साहित्य ने वायु प्रदूषण के प्रभाव को माना है, लेकिन इसमें सामान्य रुग्णता और मृत्यु दर जैसे अन्य परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। हमारी कुल जानकारी के अनुसार, कम विकसित देश में बच्चों और महिलाओं की एनीमिक स्थिति पर कोयले से उत्पन्न प्रदूषण के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए हमारा अध्‍ययन अनुप्रयुक्‍त अर्थशास्त्र में पहला अध्ययन है। हमारा विश्लेषण एनीमिया पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच करके जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा नीति की स्वास्थ्य लागतों पर बढ़ते साक्ष्‍यों में और वृद्धि करता है। कोयले से संबंधित प्रदूषण के कारण इन अतिरिक्त लागतों के जुड़ जाने से नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्युअबल ऊर्जा) के लिए एक प्रगतिशील बदलाव के साथ कोयले पर निर्भरता को कम किए जाने का मामला मजबूत होता है। ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भी है जहां आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि हो रही है।


लेखक परिचय: निधिया मेनन ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की असोसिएट प्रोफेसर हैं, ब्रैंडिस स्थित हेलसे स्कूल फॉर सोशल पॉलिसी एंड मैनेजमेंट में एक सहयोगी हैं, और इंस्टीट्यूट फॉर लेबर इक्नोमिक्स (आईज़ेडए) में एक रिसर्च फेलो हैं। सोरंगसू चौधरी यूनिवरसिटि ऑफ कैलिफोर्निया बर्कली के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में फुलब्राइट नेहरू डॉक्टरल स्कॉलर रहे हैं और वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, आईआईटी दिल्ली में पीएचडी कर रहे हैं। गौरव दत्त मोनाश यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में असोसिएट प्रोफेसर और सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एंड सस्टेनेबिलिटी के उप निदेशक हैं। डॉ. सग्निक दे आईआईटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पुष्कर मैत्रा मोनाश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं, उनके प्राथमिक अनुसंधान क्षेत्र विकास अर्थशास्त्र, जनसंख्या अर्थशास्त्र, प्रायोगिक अर्थशास्त्र और अप्लाइड इकौनोमेट्रिक्स हैं। रंजन राय मोनाश यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। 

SOURCE ;  .ideasforindia


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