संकट कई प्रकार के होते हैं। कभी संकट काे हम विपत्ति कहते हैं; कभी दर्द, कभी मुसीबत तो कभी दुःख। संकटाें का हम बहुत वर्गीकरण कर सकते हैं, हमारे अनुभवाें के आधार पर। अपना-अपना संकट हाेता है सबका। कभी व्यक्ति पर प्राण संकट आता है; कभी पारिवारिक संकट, कभी सामाजिक तो कभी राष्ट्रीय और वैश्विक संकट आ सकता है। आज देश-दुनिया पर काेराेना का भीषण संकट है। इस माहौल में मैं तीन संकट की बातें करूंगा।
‘हनुमान चालीसा’ में तीन बार ‘संकट’ शब्द का प्रयाेग हुआ है।
संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जाे लावै।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जाे सुमिरै हनुमंत बल बीरा।।
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
आज के संदर्भ में भी तीन प्रकार के संकट हैं। पहला प्राण संकट, जो पूरी दुनिया पर हावी हाे रहा है। कितने मुल्काें में कितनी बड़ी संख्या में माैतें हुई हैं! भारत में भी हम राेज़ आंकड़े पढ़ते हैं। इस विपत्ति के समय में इंसान के शरीर में रहे पंचप्राण असंतुलित हाे चुके हैं। कब क्या हाेगा? दूसरा है ‘राष्ट्रसंकट’ अथवा सीमाओं से बाहर जाएं ताे ‘विश्वसंकट।’
आज प्राण संकट भी है और विश्व संकट भी
आज प्राण संकट भी है और राष्ट्र और विश्व पर भी संकट है। तीसरा है धर्मसंकट। लाेकबाेली में भी अक्सर बाेलते हैं कि हम पर धर्मसंकट आया था इसलिए ऐसा करना पड़ा। धर्मसंकट का मतलब जाे सत्य का राही है, जाे प्रेम का मार्गी है, उस पर संकट आए। जाे करुणा स्वभाव वाला है, उसपर संकट आए।
प्राण संकट, राष्ट्र अथवा विश्व संकट और धर्मसंकट। बुद्ध पुरुषाें की बानी उनकी अंतःकरण की प्रवृत्ति के कारण बहुत ही पहले बातें बोल देती है। इसीलिए गाेस्वामीजी ने शायद तीन बार ‘संकट’ शब्द का प्रयाेग किया। चलाे, तीनाें प्रकार के संकट हैं लेकिन इनसे मुक्त हाेने के लिए क्या राेते रहें? कायर हाे जाएं? इस माहाैल में क्या करें? डिप्रेस हो जाएं? ताे क्या इससे संकट से मुक्ति मिलेगी?
जैसे किसी मृग काे शिकारी तीर मार दे ताे इसके बारे में ज्यादा चिंतन बाद में करना चाहिए कि यह तीर कहां से आया? कितना बड़ा था? किसने, क्याें, कब मारा? यह बातें बाद में साेची जाती हैं। लेकिन उसी समय ताे एक ही बात हाेनी चाहिए कि तीर पशु की देह से कैसे निकालें?
ताे हम सब मिलकर यह सोचें कि प्राण संकट, धर्मसंकट, राष्ट्र संकट से कैसे बाहर आएं? इनसे बाहर आने के उपाय हैं। उसके भाैतिक उपाय हाे सकते हैं, जिन्हें आधिभाैतिक कहते हैं। जैसे पूरा देश इस उपाय में लगा है, ऐसा कराे, यह कराे। जाे धरावाला, सत्य है, इसकाे आधिदैविक कहते हैं। काेई अनुष्ठान में बैठा है, काेई यज्ञ कर रहा है, काेई बंदगी कर रहा है। ये भी उपाय हैं। और कुछ आध्यात्मिक उपाय भी हैं।
हनुमान जी सबके हैं
‘हनुमान चालीसा’ की संकट वाली तीनों पंक्तियों पर ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा। यह भी आध्यात्मिक उपाय हैं। ‘संकट से हनुमान छुड़ावै।’ यहां ‘हनुमान’ शब्द आता है ताे काेई एक धर्म या परंपरा का है? नहीं। मैंने बार-बार कहा, हनुमानजी वायुपुत्र हैं, प्राणतत्व हैं, इसलिए सबके हैं। दूसरी बार ‘संकट’ शब्द आया तो वहां लिखा है, जाे हनुमंत का सिमरन करे उनकी सारी पीड़ा मिट जाती है। मेरे साधक भाई-बहन, जिसका ध्यान कराे, उसी का सुमिरन कराे। और जिसका सुमिरन कराे, उसे ही हृदय में रखाे। केंद्र एक हनुमान हाे। सार्वभाैम, सर्वव्यापक तत्व हाे। वहां संकट से हनुमान छुडाएंगे। मन, कर्म, वचन से उनका ध्यान कराे। यदि ध्यान नहीं कर सकते हनुमानजी का ताे ‘जाे सुमिरै हनुमंत बलबीरा।’ बलबीरा, मेरे इष्ट सर्व समर्थ हैं, मैं उनका सिमरन करूं। यह दूसरा उपाय है।
तीसरा, श्री हनुमानजी संकटहर्ता हैं। हनुमानजी काे राम, लखन और जानकी सहित हृदय में रखाे। यह पूरी आध्यात्मिक प्रक्रिया है। उल्टी यात्रा करूं ताे जाे हृदय में है, उसी का सुमिरन कराे और जिसका सुमिरन करो, उसी काे ध्यान में रखाे, निरंतर चित्त में रखाे। ध्यान किसी और का, सुमिरन किसी और का, हृदय में कुछ और रहेगा ताे संकट से कैसे मुक्ति मिलेगी? कोई भी संकट हो, हृदय में वाे परमतत्व विराजित हाे। जाे है उसका साक्षात्कार हो। हमारे किरदार में यह बात आ जाए। आओ, हम सब प्राण संकट, धर्मसंकट, विश्व संकट से उबरने के लिए उसी तत्व का ध्यान धरें; उसी काे हृदय में रखें।
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