(राजेंद्र दुबे) हमेशा से हाईप्रोफाइल रही सागर जिले की सुरखी सीट में इस बार दलबदल का मुद्दा ही खत्म हो गया है। 2003, 2008 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने गोविंद सिंह राजपूत इस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी होंगे। राजपूत मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। वे अब राजस्व और परिवहन विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि 2013 में राजपूत को भाजपा के टिकट पर महज 141 वोट से हराने वाली पारुल साहू अब कांग्रेस प्रत्याशी हैं। राजपूत अभी तक विधानसभा क्षेत्र के सभी प्रमुख स्थानों पर सभाएं कर चुके हैं और कांग्रेस के विरोध के बावजूद क्षेत्र में रामशिला यात्रा निकाल चुके हैं।
इधर, पारुल साहू भी राेज 8-10 ग्राम पंचायतों में पहुंच रही हैं। पारुल के साथ पूरी जिला कांग्रेस दिखाई दे रही है। अभी उनका फोकस भाजपा के गढ़ माने जाने वाले इलाकों पर है, क्योंकि यहीं से वोटों का फेरबदल संभव है। राजपूत और पारुल दाेनाें की नजर ओबीसी मतदाताओं पर है, जिनकी संख्या इस क्षेत्र में 1.10 लाख है। राजपूत ने लोधी समाज को लुभाने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल का कार्यक्रम क्षेत्र में कराया। वहीं पारुल साहू पूर्व मंत्री हर्ष यादव के साथ क्षेत्र में जनसंपर्क कर रही हैं। दोनों प्रत्याशी अपने-अपने कार्यकाल में हुए कामों को गिना रहे हैं, लेकिन क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यहां मुख्य समस्या तो बेरोजगारी है। लोगों को रोजी-रोटी के लिए बाहर जाना पड़ता है। लॉकडाउन के दौरान इसकी हकीकत सामने आ चुकी है।
विकास
राजपूत विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने जगह-जगह शिलान्यास-लोकार्पण किए हैं। पारुल भी अपने कार्यकाल में हुए कामों को गिना रही हैं। मौका मिला तो विकास का वादा कर रही हैं।
विश्वास
राजपूत के खिलाफ आज कांग्रेस ही खड़ी है। जिन भाजपा नेताओं के खिलाफ रहे, वे सहयोगी हैं। ऐसे में कौन वास्तव में साथ है और कौन नहीं, ये पता करना मुश्किल होगा। यही स्थिति पारुल की भी है।
विरासत
राजपूत के साथ उनका पूरा परिवार और कई समर्थक भी भाजपा में आए हैं। पारुल के पिता भी विधायक रह चुके हैं। इसलिए विरासत के नाम पर मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश की जाएगी।
लोगों का मुद्दा : विकास और बेरोजगारी
झिला गांव में 2500 वोटर हैं। दोपहर में एक जगह कोरोना की चिंता से बेफिक्र कुछ लोग बैठे हैं। हसीन खान ने बताया, पिछले साल का फसल बीमा आधे गांव के किसानों का आया है, आधे का नहीं। इस बार की फसल भी चौपट है। काेरोना का दौर चल रहा है, सरकार के हाथ तंग हैं। ऐसे में मुआवजे का क्या होगा, कुछ पता नहीं है।
कुलदीप चौबे का कहना है, हम विकास चाहते हैं। दोनों ही प्रत्याशियों के कार्यकाल देखे हैं। उसी का मूल्यांकन करते हुए वोट देंगे। 70 साल के हल्केसिंह राजपूत बोले- ई बेर दोई प्रत्याशी नई पार्टी सें चुनाव लड़ रए हैं। कल तक जो दुश्मन हते अब वे दोस्त हैं, तो जो दोस्त हते वे दुविधा में हैं। ऐसे में केबो मुश्किल है के को जीतहे। मनो जा बात तय है के चुनाव टक्कर को हुईए। इसके अलावा धनबल, बाहुबल और सिंचाई की भी क्षेत्र में चर्चा है।
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