बावनगजा में चातुर्मास के दौरान पूजन विधान व धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं। मुनिश्री अध्ययन सागरजी महाराज व आर्यिका विदक्षाश्री माताजी भी यहां चातुर्मास आराधना कर रहे हैं। संतों के सान्निध्य में सोमवार को समाज के लोगों ने भगवान आदिनाथ का अभिषेक व शांतिधारा की। बाकानेर से आए ट्रस्ट पदाधिकारी विनोदकुमार डोसी व समाज के लोगों ने भगवान आदिनाथ की शांतिधारा का सौभाग्य प्राप्त किया।
चरण वंदना कर मांगी क्षमा
भक्तामर विधान का पाठ, पूजन के बाद भगवान की चरण वंदना कर वर्षभर में जाने-अनजाने में किए अपराधों के लिए क्षमा याचना की। मंगल कलश भगवान के चरणों में विराजित किए। साथ ही विश्व में सुख, शांति की कामना की। ट्रस्ट पदाधिकारियों ने बताया चातुर्मास के दौरान सिद्धक्षेत्र बावनगजा में पूजन विधान, धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं। इसमें कोविड-19 की गाइड लाइन का पालन किया जा रहा है। सामाजिक दूरी के साथ कम संख्या में समाज के लोग कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं।
परिणामों को संभालना सबसे बड़ा धर्म-माताजी
पूजन विधान के बाद आर्यिका विदक्षाश्री माताजी ने धर्म सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा परिणामों को संभालना ही सबसे बड़ा धर्म है। कोई मनुष्य कर्मों से हार कर कोई गलत कदम न उठो ले, इस बात का ध्यान रखना है। क्योंकि एक क्षण का गलत फैसला, उस जीव का पूरा जीवन बर्बाद कर सकता है। वह दुर्गतियों का शिकार बन सकता है। धर्मात्मा जीव का यह कर्तव्य है कि वह सभी जीवों के प्रति दया भाव रखें। धर्मात्मा सभी प्राणियों की सुरक्षा करता है।
सभी के सुख-दु:ख में सहयोगी बनता है। यहीं उसके धर्मात्मा होने की सबसे बड़ी पहचान है। उन्होंने कहा हम सभी का कर्तव्य है कि सभी जीवों की धरम में स्थिरता बनी रहे। धर्मी, कभी धर्म से पृथक न हो, ऐसा सुंदर वातावरण बनाना चाहिए। गिरते हुए व्यक्ति को ऊपर उठाने का प्रयास करना चाहिए। वह अपने पद से नीचे न डिग पाए, आत्मा का पतन न हो जाए, धर्म में दृढता बनी रहे यहीं धर्म है।
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