पाकिस्तान, वहां की सरकार और सेना में इन दिनों काफी उथल-पुथल मची हुई है। कारण है एक पत्रकार की रिपोर्ट, जिसमें पाकिस्तानी सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल असीम बाजवा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। इस रिपोर्ट में दावा है कि सेना में जैसे-जैसे बाजवा की रैंक बढ़ती गई, वैसे-वैसे उनके परिवार का बिजनेस भी बढ़ता गया। जनरल बाजवा प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सहायक थे और भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, बाद में इमरान खान ने उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया।
इसके साथ ही बाजवा चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी के चेयरमैन भी हैं। हालांकि, उन्होंने सीपीईसी के चेयरमैन पद से इस्तीफा नहीं दिया है। बाजवा पर सेना में अहम पदों पर रहते हुए और सीपीईसी के चेयरमैन पद पर आने के बाद बेतहाशा कमाई का आरोप है।
सीपीईसी चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो उसने 2013 से शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट का मकसद एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क, रेल और समुद्री रास्ते से जोड़ना है। सीपीईसी चीन के काशगर प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ता है। इसकी लागत 2013 में 46 अरब डॉलर आंकी गई थी, लेकिन 2017 में इसकी लागत बढ़कर 62 अरब डॉलर हो गई है।
असीम बाजवा को इमरान खान का करीबी माना जाता है। बाजवा अपने मिलिट्री करियर के दौरान कई अहम पदों पर रह चुके हैं। वो सदर्न कमांड के कमांडर रह चुके हैं। इसके अलावा वो जनरल हेडक्वार्टर में जनरल आर्म्स इंस्पेक्टर और इंटर-सर्विसेस पब्लिक रिलेशन में डायरेक्टर जनरल के पद पर भी रह चुके हैं।
पाकिस्तान की मीडिया में सरकार या सेना के खिलाफ खबरें कम ही दिखाई जाती हैं, लेकिन उसके बावजूद पिछले दो हफ्तों से बाजवा सुर्खियों में बने हुए हैं।
99 companies
— Ahmad Noorani (@Ahmad_Noorani) August 27, 2020
130 franchises
13 comm properties including 2 shoppling centers in US
Son Eusha purchased 2 houses in United States when Lieutenant General Asim Saleem Bajwa was commander Southern Command.
Read my investigations for @FactFocusFF#FactFocushttps://t.co/sic5c0p4f3
आखिर बाजवा पर क्या आरोप लगे हैं?
पाकिस्तानी पत्रकार अहमद नूरानी ने पिछले हफ्ते 'फैक्ट फोकस' वेबसाइट पर एक रिपोर्ट छापी थी। इस रिपोर्ट में नूरानी ने दावा किया है कि मिलिट्री और नॉन-मिलिट्री पदों पर रहते हुए बाजवा के परिवार ने लाखों डॉलर की प्रॉपर्टी बनाई है।
रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि सेना में आने से पहले तक बाजवा के परिवार का कोई बड़ा कारोबार नहीं था। लेकिन, जैसे-जैसे मिलिट्री में बाजवा की रैंक बढ़ती गई, वैसे-वैसे उनके परिवार का कारोबार भी बढ़ता चला गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, आज बाजवा, उनकी पत्नी, उनके तीन बेटे और पांच भाइयों के नाम पर चार देशों में 99 कंपनियां, 133 पिज्जा फ्रेंचाइजी हैं, जिनकी कीमत लगभग 3.99 करोड़ डॉलर है। इसके अलावा उनके परिवार के नाम पर 15 कमर्शियल और रेसीडेंशियल प्रॉपर्टी भी हैं, जिनमें दो शॉपिंग सेंटर और अमेरिका में दो घर भी शामिल हैं।
आरोप ये भी हैं कि बाजवा के परिवार ने अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए 5.22 करोड़ डॉलर खर्च किए। 1.45 करोड़ डॉलर से अमेरिका में प्रापर्टी खरीदीं।
अहमद नूरानी ने रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि शुरुआत से ही बाजवा की पत्नी फारुख जेबा हर कारोबार में शेयरहोल्डर थीं। दावा है कि फारुख जेबा 82 विदेशी कंपनियों समेत 85 कंपनियों से या तो सीधे तौर से जुड़ी हैं या फिर शेयरहोल्डर हैं। इनमें से 71 कंपनियां अमेरिका, 7 यूएई और 4 कनाडा में हैं।
आरोप है कि बाजवा परिवार ने कारोबार करने के लिए 'बाजको ग्रुप' बनाया था। 2015 में बाजवा के बेटे भी इस ग्रुप से जुड़ गए। बेटों ने ही कारोबार को अमेरिका और पाकिस्तान में फैलाना शुरू किया और ये सब तब हो रहा था, जब बाजवा आईएसपीआर में डीजी और सदर्न कमांड के कमांडर बने।
आरोप लगे, इस्तीफा दिया, लेकिन नामंजूर
बाजवा ने ट्वीट कर अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को 'दुर्भावनापूर्ण प्रॉपेगैंडा' बताया है। बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि पाकिस्तान से बाहर उनकी या उनकी पत्नी की न तो कोई संपत्ति है और न ही कोई कारोबार।
A malicious propaganda story published on an unknown site, against me and my family, (just uploaded on social media)is strongly rebutted
— Asim Saleem Bajwa (@AsimSBajwa) August 27, 2020
भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर बाजवा ने प्रधानमंत्री के विशेष सहायक के पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, इमरान खान ने उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया। बाजवा ने सिर्फ विशेष सहायक के पद से इस्तीफे की पेशकश की थी। जबकि, सीपीईसी के चेयरमैन के पद पर बने रहने का ही फैसला किया।
I strongly rebut the baseless allegations levelled against me and my family.Alhamdolillah another attempt to damage our reputation belied/exposed.I have and will always serve Pakistan with pride and dignity. pic.twitter.com/j185UoGhx1
— Asim Saleem Bajwa (@AsimSBajwa) September 3, 2020
उनकी सफाई के बाद भी पाकिस्तान में ये मामला शांत नहीं हुआ है। बाजवा और उनका परिवार इस रिपोर्ट को खारिज कर रहा है, लेकिन उनके विरोधियों ने इस पूरे मामले की जांच नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो से कराने की मांग की है। उनके विरोधी इस्तीफा नामंजूर होने से भी नाखुश हैं, क्योंकि इमरान खान सत्ता में आने से पहले भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करते आ रहे थे।
उधर, इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने इस रिपोर्ट को सीपीईसी पर हमला बताया है।
बाजवा पर आरोपों का कुछ खास असर नहीं होगा
पाकिस्तान के एक सीनियर जर्नलिस्ट और एनालिस्ट नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि बाजवा का इस्तीफा न सिर्फ उनकी सफाई को खारिज करता है, बल्कि सीपीईसी की लीडरशिप में बदलाव को भी मजबूती देता है।
वो कहते हैं कि सीपीईसी, जो अभी तक बना भी नहीं है, उसमें पहले से ही उसमें लाखों डॉलर की गड़बड़ी की बातें आने लगी हैं। इस बात में कोई सेंस भी नहीं दिखता कि सीपीईसी का चेयरमैन उसे बनाया जाए, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।
हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि पाकिस्तान में जब भी सेना पर सवाल खड़े हुए हैं, तो ऐसे मुद्दों को पीछे ही धकेल दिया जाता है। वो बताते हैं, 'मीडिया में बाजवा को तभी दोषी ठहराया गया, जब उनसे उनके बचाव में सबूत पेश करने की बात पूछी गई। जबकि, इससे पहले बाजवा एक इंटरव्यू को बीच में ही छोड़कर चले गए थे, जिसे चैनल ने काट दिया था।'
एक और पॉलिटिकल एनालिस्ट ने भी नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि बिना सबूतों के भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, लेकिन पूर्व जनरल (बाजवा) इसे 'ऐतिहासिक' बता रहे हैं।
वो कहते हैं, 'सेना को जवाबदेह ठहराने में नाकामी बताती है कि कैसे पाकिस्तान के इतिहास का आधा समय मिलिट्री रूल और आधा मिलिट्री सपोर्टेड लोगों के अधीन खर्च हुआ। और जिन लोगों को जांच के दायरे में रखा भी गया, वो अपने खुद के आर्थिक गड़बड़ियों की वजह से दायरे में आए।'
उनके मुताबिक, आज पाकिस्तानी सेना का एम्पायर 100 अरब डॉलर से ज्यादा है, जो चीन 62 अरब डॉलर के सीपीईसी की लागत से करीब दोगुना है।
बलोच नेताओं का क्या है कहना?
मीर करीम तालपुर एक अलगाववादी नेता हैं और फिलहाल विदेश में रह रहे हैं। वो बलोच स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन से भी जुड़े रहे हैं। सीपीईसी प्रोजेक्ट को मीर चीनी लीडरशिप और पाकिस्तानी सेना का गठबंधन बताते हैं।
वो कहते हैं, 'वो दोनों पाकिस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल खुद को विकसित करने में कर रहे हैं।' उनका कहना है कि सीपीईसी बलोचिस्तान और शिन्जियांग को भी जोड़ता है और ये दोनों ही जगहें पाकिस्तान और चीन की तरफ से अपमानित होते रहीं हैं।
मीर करीम कहते हैं, दोनों ही सरकारें इस पर अपना कंट्रोल बनाए रखना चाहती हैं, ताकि दोनों लीडरशिप में से किसी पर कोई विवादित सवाल न उठे और जब इकोनॉमिक कॉरिडोर के साथ-साथ दोनों की महत्वाकांक्षाएं भी मिल रही हैं, तो उससे साफ है कि पाकिस्तान में सीपीईसी एक ऐसा मुद्दा बन गया है, जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।
जब लाहौर के एक बलोच नेता से इस बारे में बात की गई, तो उन्होंने कहा कि इमरान खान, जिनका चुनाव प्रचार पूरी तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ था, वो अब एक भ्रष्टाचारी के साथ खड़े हुए हैं।
सीपीईसी चीनी सरकार और पाकिस्तानी सेना का प्रोजेक्ट है?
कुछ सूत्रों का कहना है कि अगस्त 2018 में जब इमरान खान की पीटीआई पार्टी सत्ता में आई, तो उसने सीपीईसी प्रोजेक्ट के समय की गई डील्स को फिर से जांचने को कहा था, ताकि इस प्रोजेक्ट में लगने वाले पाकिस्तान के पैसे को कम किया जा सके।
प्रधानमंत्री बनने के दो महीने बाद जब इमरान खान चीन की यात्रा पर गए, तो वहां चीनी सरकार के अधिकारियों ने दो टूक कह दिया कि 'सीपीईसी पर दोबारा बहस करने की हिम्मत न करें।'
चीन समझ गया कि पाकिस्तान की सरकार सीपीईसी से खुश नहीं है, इसलिए उसने इस प्रोजेक्ट पर पूरी तरह से पाकिस्तान की सेना को शामिल करने का फैसला किया और नवंबर 2019 में सीपीईसी अथॉरिटी का गठन किया, जिसका चेयरमैन असीम बाजवा को बनाया गया। इसी साल जुलाई में पाकिस्तान की संसद में सीपीईसी अथॉरिटी बिल 2020 पेश किया गया है, जिसका मकसद कॉरिडोर सेना के हाथों सौंपना है।
2015 में सीपीईसी के लॉन्च होते ही सेना की इस प्रोजेक्ट पर नजर थी। प्रोजेक्ट शुरू होते ही सेना ने सबसे पहले जिहादी समूहों को खत्म करने का काम किया, क्योंकि इससे सीपीईसी पर खतरा था।
बाजवा को हटा भी नहीं सकता पाकिस्तान?
पाकिस्तान में इमरान की सरकार आने से पहले पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की सरकार थी। पीएमएल-एन के एक सीनियर मेंबर बताते हैं, 'हमारी सरकार ने ऐसे किसी भी मुद्दे पर सेना को शामिल करने से साफ मना कर दिया था, जो देश की सिक्योरिटी और डिप्लोमेसी से जुड़ी हो। यही सीपीईसी में भी हुआ। इसी कारण पीटीआई को चुनाव में जीत मिली।'
वो बताते हैं कि चीन की तरफ से कह दिया गया था कि अगर कोई चीन पर सवाल खड़ा करता है, तो उसे सीपीईसी पर हमला माना जाएगा।
कनाडा में रहने वाले बाजवा के पूर्व साथी बताते हैं कि अगर बाजवा को पद से हटाया जाता है, तो इसे सीधे तौर पर सीपीईसी को अस्थिर करने की साजिश मानी जाएगी।
वहीं, बाजवा और सीपीईसी पर सवाल करने पर सेना के एक पूर्व अधिकारी का कहना है, यहां तक कि जिस ट्वीट में बाजवा ने अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज किया है, वो भी एक साजिश का खुलासा करता है।
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