इजराइल के तीन वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस टेस्टिंग का स्मार्ट तरीका ढूंढ़ लिया है। यह परंपरागत टेस्टिंग से ज्यादा तेज और कारगर साबित हो रहा है। इसमें लोगों के समूह (पूल) से किसी एक व्यक्ति का टेस्ट कर बाकियों में संक्रमण का पता लगाया जाता है। इस पद्धति को इजरायली स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्कूल और कॉलेज कैंपस में टेस्टिंग के लिए अप्रूव कर दिया है।
सरकार इस पद्धति को अक्टूबर से देश की 12 प्रयोगशालाओं में लागू करने की योजना बना रही है, क्योंकि माना जा रहा है कि संक्रमण की अगली लहर इन्फ्लूएंजा के साथ मिलकर खतरनाक साबित हो सकती है। इस तकनीक को इजराइल ओपन यूनिवर्सिटी के डॉ नाओम शेंटल और उनके सहयोगियों डॉ. टोमर हर्ट्ज और एंजेल पोर्गडोर ने खोजा है। उन्होंने इसे पी-बेस्ट यानी पूलिंग आधारित सार्स-कोविड 2 टेस्टिंग नाम दिया है।
शोध के लिए 384 लोगों के 48 समूह बनाए
शोध के लिए उन्होंने 384 लोगों के 48 समूह बनाए। हर पूल से एक व्यक्ति का टेस्ट किया गया। जिस पूल में संक्रमित मिला, उस पूल के सभी सदस्यों को पॉजिटिव मान लिया गया। इस तरह नतीजे पहले से कम समय में आए और सभी की जांच की जरूरत भी नहीं पड़ी। अमेरिकी विशेषज्ञों ने भी इस तकनीक को सराहा है और जल्द ट्रायल की अनुमति मांगी है।
यूरोप में मामले बढ़े, लेकिन अगली लहर कम जानलेवा
यूरोप में संक्रमण का असर धीरे-धीरे बढ़ रहा है लेकिन मौजूदा आंकड़ों की माने तो इस बार यह लहर कम घातक होगी। बुजुर्गों की ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग से संक्रमितों की तेज पहचान करने के चलते संक्रमण फैलने की दर काफी हद तक काबू में हैं। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पब्लिक हेल्थ के लेक्चरर जॉन फोर्ड कहते हैं कि लोग वायरस लक्षणों के प्रति पहले से ज्यादा जागरुक हैं, इसलिए अब दूसरी लहर कमजोर होगी।
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में प्रोफेसर ग्राहम कुक कहते हैं कि नए मामलों और मौत के आंकड़ों में हमेशा अंतर रहा है। यदि संक्रमण बढ़ता भी है तो अब मृत्युदर काफी कम होगी।
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