तिरुपति में एक घर मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों का श्रीश मंदिरम स्कूल बन गया है। यहां ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त करीब 25 बच्चे हैं। स्कूल दोहा मेट्रो में मैकेनिकल इंजीनियर रहे मधुबाबू और उनकी पत्नी वारीजा चंद्रलता चलाते हैं। मधु बाबू बताते हैं कि वे दोहा (कतर) में इंजीनियर थे। अचानक बेटी की तबियत खराब हुई।
डॉक्टरों ने बताया कि वह दिमागी अक्षमता का शिकार हो सकती है। चंद्रलता दोनों बच्चों को लेकर तिरुपति आ गईं। इस बीच, पता चला कि बेटे श्रीश को दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी म्यूकोपॉलीसैकेराइड है। हम बच्चों के लिए विशेष स्कूल ढूंढ रहे थे लेकिन भरोसेमंद स्कूल नहीं मिला। 2010 में विशेष बच्चों के 15 माता-पिता के साथ पेरेंट्स एसोसिएशन ऑफ चिल्ड्रेन विद स्पेशल नीड्स (पीएसी) संस्था बनाई।
सरकार से मदद मांगी लेकिन नहीं हुई सुनवाई
तिरुपति तिरुमला देवस्थानम ट्रस्ट से विशेष बच्चों के लिए स्कूल खोलने का निवेदन किया। सरकार से भी गुहार लगाई। लेकिन, कहीं से कोई जवाब नहीं आया। 2013 में हमने अपने घर में विशेष बच्चों के हिसाब से बदलाव किए और श्रीश मंदिरम स्कूल शुरू किया। 2015 में श्रीश चल बसा। चंद्रकला ने स्पेशल एजुकेशन का कोर्स किया।
आज स्कूल में 4 साल से 35 वर्ष तक के 25 बच्चों के लिए 10 प्रशिक्षित शिक्षक हैं। एक-एक बच्चा दुबई, कनाडा और अमेरिका से भी है। इनमें 50% बच्चे बिल्कुल फिट हैं। इनमें बेटी वर्षिनी भी है, जिसने पिछले साल विशेष बच्चों की दौड़ में राज्य स्तर पर स्थान हासिल किया है। हम उसे 2023 में जर्मनी में होने वाले स्पेशल ओलंपिक के लिए तैयार कर रहे हैं। 15 साल के दो बच्चों को एक डेयरी कंपनी ने जॉब भी ऑफर की है। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद वे यहां नौकरी करेंगे।
क्या होता है स्कूल में?
श्रीश मंदिरम डे बोर्डिंग स्कूल है। सुबह 9 से शाम साढ़े चार बजे तक चलता है। फिजियोथैरेपी के साथ नई-नई चीजें सीखने की कक्षाएं होती हैं। स्कूल ने फाइव हार्ट्स योजना शुरू की है। इसमें सामान्य बच्चों से कहा जाता है कि वे स्कूल के किसी एक बच्चे को दोस्त बनाएं। उससे मिलने कभी-कभी आएं। उनके साथ खेलें और बातचीत करें। इससे इन विशेष’ बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और वे खुश भी होते हैं।
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