भारत के किसान परंपरागत रूप से अपने मृत मवेशियों के शवों के निपटान हेतु गिद्धों पर भरोसा करते आये हैं। किन्तु आकस्मिक विषाक्तता के चलते भारत में गिद्धों की संख्या कम हो जाने के कारण मृत मवेशियों के शवों की सफाई रूक-सी गई है और स्वच्छता का माहौल बिगड़ गया है। फ्रैंक और सुदर्शन इस लेख में, गिद्धों की संख्या में गिरावट के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर हो रहे नुकसान के परिणामों का अनुमान लगाते हुए दर्शाते हैं कि गिद्धों की संख्या के सबसे निचले स्तर पर आ जाने की अवधि के दौरान मनुष्य की मृत्यु-दर में वृद्धि हुई है, और वे यह भी दर्शाते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र में गिद्धों की भूमिका को आसानी से पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता है।
वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जानवरों और पौधों की प्रजातियों को मानव गतिविधि खतरनाक रूप से अत्यधिक नुकसान पहुंचा रही है, और इसे पृथ्वी के इतिहास में छठी बड़े पैमाने की विलुप्ति माना गया है (सेबालोस एवं अन्य 2015, जौरेगुइबेरी एवं अन्य 2022)। इसलिए यह समझना इतना महत्वपूर्ण कभी नहीं रहा कि अन्य प्रजातियों की हानि मानव कल्याण को कैसे प्रभावित कर सकती है? हम हाल के एक अध्ययन (फ्रैंक और सुदर्शन 2023) में, भारत में गिद्धों की व्यावहारिक रूप में विलुप्ति का अध्ययन करते हैं और पाते हैं कि इन पक्षियों के गायब होने से मनुष्य की मृत्यु-दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत में गिद्धों की शुरुआती संख्या लगभग 5 करोड़ थी, जो 1990 के दशक के मध्य के दौरान कुछ ही वर्षों की अवधि में घटकर 95% से अधिक कम हुई है (वाटसन एवं अन्य 2004)। अब तक के दर्ज इतिहास में किसी भी पक्षी प्रजाति की संख्या में यह सबसे तेज गिरावट है, और यह यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में पैसेंजर (या जंगली) कबूतर के विलुप्त हो जाने के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है। हमने पाया कि गिद्धों के विनाश की वजह से उन जिलों में – जो कभी गिद्धों के लिए अत्यधिक उपयुक्त थे और बाद में उन्हें खो दिया — सभी प्रकार के कारणों से होनेवाली मनुष्य की मृत्यु-दर 4% से अधिक बढ़ गई है। जिन प्रणालियों के कारण ये प्रभाव हुए, वे इस बात का एक ठोस उदाहरण हैं कि किस तरह से गैर-मानव प्रजातियाँ समाज को अत्यधिक मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती हैं।
पर्यावरण सेनिटाइज़र के रूप में गिद्धों की भूमिका
नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा सभी मुर्दाखोरों – विशेष रूप से गिद्धों को 'कीस्टोन प्रजाति' माना जाता है। यह ऐसी प्रजातियों के रूप में परिभाषित है “जो [पर्यावरण]प्रणाली का संतुलन बनाए रखती हैं।” जब कोई कीस्टोन प्रजाति नष्ट हो जाती है, तो पारिस्थितिकी तंत्र और उन पर निर्भर समाजों पर प्रभाव बहुत अधिक हो सकते हैं।
50 करोड़ से भी अधिक पशुधन वाले और मृत पशुओं के निपटान हेतु बुनियादी ढांचे की अनुपलब्धता वाले देश में, पशुपालकों ने परंपरागत रूप से गिद्धों पर पर्यावरण सैनिटाइज़र (सुब्रमण्यन 2014) के रूप में भरोसा किया है। उनके बिना मृत पशुओं के शव खुले क्षेत्र में पड़े रहते हैं या किसानों द्वारा पानी में फेंक दिए जाते हैं। दोनों ही बीमारी और जल प्रदूषण का खतरा पैदा करते हैं। ये सड़ी-गली लाशें कुत्तों और चूहों के लिए भोजन का एक नया स्रोत भी बनती हैं, जिससे उनकी आबादी बढ़ जाती है। जंगली कुत्ते और चूहे रेबीज संक्रमण का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो भारत में एक सर्वज्ञात सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, और यदि संक्रमण के तुरंत बाद इलाज नहीं किया जाता है तो यह समस्या अत्यंत घातक हो जाती है (मार्कंडेय एवं अन्य, 2008; राधाकृष्णन एवं अन्य, 2020)। आकृति 1 में इन विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र की अंतर्क्रिया को दर्शाया गया है,और यह दिखाया गया है कि ये सार्वजनिक स्वास्थ्य से कैसे जुड़ी हैं।
आकृति 1. पारिस्थितिकी तंत्र अंतर्क्रिया और पर्यावरण की गुणवत्ता के योजनाबद्ध सह-संबंध
फोटो स्रोत: (ए) नेशनल ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन के माध्यम से सागर गिरि द्वारा। (बी) गेटी इमेज के माध्यम से टॉम स्टोडार्ट द्वारा। (सी) पेरेग्रीन फंड। (डी) अनूप कुमार।
Photo sources: (a) Sagar Giri via National Trust For Nature Conservation. (b) Tom Stoddart via Getty Images. (c) The Peregrine Fund. (d) Anoop Kumar.
आकृति में ये अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ: diclofenac infused mortality shock - डिक्लोफेनाक संचार मौत का सदमा; Vultures – गिद्ध, Livestock carrion - पशुओं का सड़ा हुआ मांस; Dogs and rats - कुत्ते और चूहे; Water pollution - जल प्रदूषण; fecal coliforms - मल कोलीफॉर्म (कोलीफॉर्म - जानवरों के पाचन तंत्र में मौजूद बैक्टीरिया); Infectious diseases - संक्रामक रोग; Rabies – रेबीज; Public health - लोक स्वास्थ्य; Decreases - घटना; Increases - बढ़ना; Direct effect - प्रत्यक्ष प्रभाव; Indirect effect - अप्रत्यक्ष प्रभाव
गिद्धों की संख्या में अप्रत्याशित रूप में गिरावट
डिक्लोफेनाक1 के सस्ते जेनेरिक संस्करणों के आ जाने के बाद से अनजाने में हुई विषाक्तता के कारण भारत में गिद्धों की संख्या में गिरावट आई है। वर्ष 1973 में डिक्लोफेनाक को मनुष्यों के लिए दर्द निवारक के रूप में पेश किया गया था, लेकिन 1990 के दशक के मध्य में वर्ष 1993 में डिक्लोफेनाक के जेनेरिक संस्करण को मंजूरी मिलने के बाद भारत के दवा उद्योग ने बड़ी मात्रा में इस दवा का उत्पादन शुरू कर दिया। इसकी वजह से डिक्लोफेनाक की कीमत इतनी कम हुई कि पशुधन में डाइक्लोफेनाक का उपयोग आर्थिक रूप से व्यावहारिक बन गया (सुब्रमण्यन 2014) और वर्ष 1994 के आते ही डिक्लोफेनाक पशु चिकित्सा क्लीनिकों में व्यापक रूप से उपलब्ध होने लगा (कथबर्ट एवं अन्य 2014)।
जिप्स जीनस के गिद्ध जब डिक्लोफेनाक के अंश वाले मृत मवेशियों के शव खाते हैं तो उनके गुर्दे खराब हो जाते हैं और वे कुछ ही हफ्तों में मर जाते हैं। यह एक ऐसा तथ्य है जो ओक्स एवं अन्य (2004) द्वारा गिद्धों पर इसके प्रभाव के प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किये जाने तक अज्ञात रहा। वर्ष 1994 में पशु चिकित्सा में डाइक्लोफेनाक का उपयोग शुरू किये जाने के बाद जंगल में मृत गिद्धों की रिपोर्टें आने लगीं। बड़ी संख्या में गिद्धों के मर जाने की घटना संबंधी पहली रिपोर्ट वर्ष 1996 में विश्व-स्तर पर फ़ैल गई, जब एक फील्ड इकोलॉजिस्ट ने बताया कि एक विशिष्ट अध्ययन स्थल पर गिद्धों के आधे जोड़े मृत पड़े थे (सुब्रमण्यन 2014)। आज इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर रेड लिस्ट द्वारा तीन प्रभावित प्रजातियों को गंभीर रूप से ‘लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
गिद्धों की संख्या में गिरावट के मानव स्वास्थ्य पर हो रहे परिणामों का अनुमान लगाना
1990 के दशक के मध्य के दौरान गिद्धों की संख्या में तेज गिरावट ने इसके मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव का अध्ययन करने हेतु एक प्राकृतिक प्रयोग प्रदान किया। हम अपने विश्लेषण में, गिद्धों की तीनों प्रभावित प्रजातियों के प्राकृतिक आवास की उपयुक्तता संबंधी डेटा का उपयोग उनकी आधारभूत संख्या स्तरों के एक प्रॉक्सी के रूप में करते हैं। हम वैश्विक वैज्ञानिक प्राधिकरण, बर्डलाइफ इंटरनेशनल से इन पक्षियों के प्राकृतिक आवास सीमा के नक्शे प्राप्त करते हैं, और जिलों को उच्च या निम्न आवास उपयुक्तता के रूप में वर्गीकृत करते हैं (1981 की स्थिर जिला सीमाओं के बारे में उस वर्गीकरण के परिणामों के लिए आकृति 2 देखें)। यहाँ महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि यह है कि एक जिले (आवास ओवरलैप के जरिये मापे गये) में आवास उपयुक्तता के स्तर गिद्धों की ऐतिहासिक उपस्थिति हेतु उपयोगी संकेतक प्रदान करते हैं, और इस प्रकार से, यह पहचानने का साधन है कि देश के कौन से क्षेत्र गिद्धों को जहरखुरानी (विषाक्तता) के संदर्भ में से सबसे अधिक प्रभावित हुए होंगे।
आकृति 2: डिक्लोफेनाक से प्रभावित गिद्धों की श्रेणियों और पशुधन कृषि का स्थानिक वितरण
आकृति में ये अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ: High suitability for vultures, and high baseline livestock agriculture – गिद्धों के लिए उच्च उपयुक्तता, और उच्च आधारभूत पशुधन कृषि; livestock – पशुधन; suitability - उपयुक्तता
हम गिद्धों के लिए उच्च-उपयुक्तता और निम्न-उपयुक्तता वाले जिलों के बीच उनकी संख्या में गिरावट से पहले और बाद में, नागरिक पंजीकरण प्रणाली से सभी प्रकार के कारणों से होनेवाली मनुष्य की मृत्यु-दर के बढ़ने की तुलना करते हैं। हम वर्ष 1994 में पशु-चिकित्सा हेतु डाइक्लोफेनाक की उपलब्धता के साथ-साथ उपचार की शुरुआत के रूप में उपचारित या अनुपचारित स्थिति वाले जिलों को निर्दिष्ट करने हेतु उच्च और निम्न-उपयुक्तता के वर्गीकरण का उपयोग करते हैं।
वर्ष 1994 में पशु-चिकित्सा हेतु डाइक्लोफेनाक के उपयोग की शुरुआत के बाद हम पाते हैं कि गिद्धों के लिए उच्च उपयुक्तता वाले जिलों में सभी प्रकार के कारणों से होने वाली मनुष्य की मृत्यु-दर निम्न-गिद्ध उपयुक्तता वाले जिलों से भिन्न है। हम गिद्धों की संख्या में गिरावट के पहले के वर्षों में मनुष्य की मृत्यु-दर में ख़ास वृद्धि नहीं पाते हैं। यह पैटर्न कच्चे डेटा (आकृति 3, पैनल A) के साथ-साथ, जिले की औसत दरों और लचीले समय-प्रवृत्तियों (आकृति 3, पैनल B) के अनुमान परिणामों में भी दिखाई देता है। औसतन, हम पाते हैं कि अधिक लचीले समय के रुझानों को नियंत्रित करते हुए भी, अनुमानतः वर्ष 2000 से 2005 की अवधि के दौरान गिद्धों की संख्या में गिरावट होकर उनकी संख्या सबसे निम्न स्तर पर आने के बाद से मनुष्य की मृत्यु-दर में 4% से अधिक की वृद्धि हुई है।
स्थानीय वातावरण में पशुओं के शवों का फैलना बढ़ जाने से स्वच्छता संबंधी झटका सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सहज रूप से खतरनाक लग सकता है। दरअसल, हमारे निष्कर्ष गिद्धों की संख्या में गिरावट से मनुष्य की मृत्यु-दर पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव दर्शाते हैं। इन संदर्भों में, अन्य पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों के साथ तुलना करना बोधप्रद है। हाल के अनुमानों से पता चलता है कि व्यापार-सामान्य जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के तहत, वर्ष 2099 में यहां तक कि अनुकूलन और आय में वृद्धि का विचार किये जाने के बाद भी मनुष्य की मृत्यु-दर में लगभग 0.60 प्रति 1000 की वृद्धि होगी। हमारे अनुमान दर्शाते हैं कि गिद्धों को खोने का प्रभाव लगभग 80% अधिक बड़ा (0.48 प्रति 1000) रहा है।
आकृति 3: गिद्धों की संख्या में गिरावट के बाद सभी प्रकार के कारणों से होने वाली मनुष्य की मृत्यु-दर में वृद्धि
आकृति में ये अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ: Population-weighted all-cause death rates - जनसंख्या-भारित सर्व-कारण मृत्यु दर; Vulture suitability - गिद्ध उपयुक्तता; High – ऊंचा, Low – नीच; Diclofenac generic approved – डिक्लोफेनाक सामान्य अनुमोदित; Reports of decline in vultures - गिद्धों की संख्या में गिरावट की रिपोर्ट; All-cause death rates (per 1000 people) – सर्व-कारण मृत्यु दर (प्रति 1000 लोग); Year – वर्ष
हम गिद्धों की संख्या में गिरावट से पहले, जिलों को उच्च या निम्न पशुधन आबादी वाले जिलों के रूप में निर्दिष्ट करने हेतु पशुधन जनगणना के डेटा का उपयोग करके परिणामों की अपनी व्याख्या को और अधिक पुख्ता करते हैं। ये ऐसे जिले हैं जहां पशु लैंडफिल में मवेशियों के सड़े-गले शवों अधिकता होने की अधिक संभावना है। यह दर्शाता है कि मनुष्य की मृत्यु-दर में वृद्धि उन जिलों में अधिक है जिन्हें हम बेसलाइन पर उच्च पशुधन वाले जिलों के रूप में वर्गीकृत करते हैं। हम यह भी दर्शाते हैं कि जिलों के उन क्षेत्रों में प्रभाव बड़ा है जिन्हें जनगणना-शहरी के रूप में चिह्नित किया गया है, जहां उनके बाहरी इलाकों में छोटे गांवों की तुलना में (जनगणना-ग्रामीण के रूप में चिह्नित) पशु लैंडफिल होने की अधिक संभावना है।
हम रेबीज, जंगली कुत्तों, और पानी की गुणवत्ता में गिरावट के प्रमुख तंत्रों के संदर्भ में विचारोत्तेजक साक्ष्य प्रदान करने हेतु तीन अनुभव-जन्य अभ्यास करते हैं। सबसे पहले हम किसी जानवर के काटने और रेबीज के संभावित जोखिम के बाद प्राथमिक उपचार के रूप में उपयोग किये जानेवाले रेबीज के टीकों की बिक्री से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के डेटा का उपयोग करते हैं- और पाते हैं कि इस अवधि के दौरान टीके की बिक्री में वृद्धि हुई है। दूसरे, हम 2012 के पहले वर्ष के क्रॉस-सेक्शनल डेटा का उपयोग करते हैं जिसमें पशुधन की जनगणना में जंगली कुत्तों की गिनती और गिद्धों की उपयुक्तता के बीच संबंध दर्शाने के लिए जंगली कुत्तों की गिनती की सूचना दी गई थी। तीसरे, हम पानी की गुणवत्ता के विभिन्न मापों से संबंधित जिला-स्तरीय डेटा का उपयोग करते हैं, जो पानी के स्रोतों के चारों ओर सड़ने वाले मांस के उच्च स्तर के लिए अनुकूल हैं। हम पाते हैं कि विशेष रूप से मल कोलीफॉर्म और घुलित ऑक्सीजन के संदर्भ में पानी की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जो रोगजनकों और जीवाणुओं – दोनों की उच्च सांद्रता के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हैं।
भारत में गिद्धों की संख्या में गिरावट की सामाजिक कीमत
हम अपने मुख्य अनुमान का उपयोग करते हुए, उच्च-गिद्ध उपयुक्तता वाले जिलों में गिद्धों की संख्या में गिरावट के कारण 104,386 मौतों की अनुमानित औसत वार्षिक वृद्धि पाते हैं। इसके अतिरिक्त हम भारत-विशिष्ट मृत्यु दर जोखिम में कमी मान (या सांख्यिकीय जीवन का मान) का उपयोग करते हैं और प्रति वर्ष मृत्यु दर क्षति 69.4 अरब डॉलर पाते हैं।
नुकसान की लागत के बारे में सोचने का एक वैकल्पिक तरीका गिद्धों के प्रतिस्थापन लागतों की जांच करना है। गिद्धों के प्रतिस्थापन का एक रूप उनके पर्यावरणीय स्वच्छता को भस्मित्र (इन्सिनेटर) के एक नेटवर्क के जरिये बदलने की कोशिश होगी, जो सड़ने वाले मांस का निपटान करेगा। हम पिछली रिपोर्ट (ईश्वर एवं अन्य 2016) के अनुमानों को आगे बढ़ाते हुए मोटे तौर पर अनुमान लगाते हैं कि भस्मित्र (इन्सिनेटर) के नेटवर्क को संचालित करने में प्रति वर्ष 76. 8 करोड़ डॉलर खर्च होंगे। हालांकि, इस गणना में भस्मित्र (इन्सिनेटर) के संचालन से होनेवाले वायु प्रदूषण के नुकसान और मृत जानवरों को भस्मित्र (इन्सिनेटर) तक ले जाने की लागत को नहीं आँका गया है, क्योंकि पशु लैंडफिल की तुलना में भस्मित्र कम होंगे। अतः मृत जानवरों को लम्बी दूरी के लिए ढ़ोने की आवश्यकता होगी।
समापन टिप्पणी
भारत में गिद्धों की संख्या में गिरावट दर्शाती है कि कीस्टोन प्रजातियों को खोने से उसके सामाजिक प्रभाव बहुत गहरे हो सकते हैं।2 इस सेटिंग में पारिस्थितिकी तंत्र में नए रसायनों को शामिल करने से इसकी कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, जिसका मानव कल्याण पर प्रभाव पड़ा है। चूँकि रुग्णता पर प्रभाव की जांच करते समय हमारे पास डेटा की उपलब्धता सीमित है। इसलिए हमारे विश्लेषण से संभवतः गिद्धों के महत्व के बारे में एक कम बाध्य अनुमान प्राप्त होता है।
गिद्धों की कीस्टोन प्रजातियां पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए यह विचार करना विवेकपूर्ण हो जाता है कि विनियामक अनुमोदन और कार्रवाई में परिवर्तन उन्हें कैसे प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि डाइक्लोफेनाक के ग्रहण की स्थिति में कौन सी कीस्टोन प्रजाति उसके संपर्क में आएगी – इस पर पूर्वानुमानित मूल्यांकन किया जाता, तो गिद्धों को तुरंत ‘कमजोर’ के रूप में चिह्नित किया जाता; फिर वैज्ञानिकों द्वारा इसके बड़े प्रतिकूल प्रभावों की क्षमता का परीक्षण और पहचान किया जा सकता था।
गिद्धों का अनजाने में दिया जा रहा जहर इस बात का सिर्फ एक उदाहरण है कि वन्यजीव प्रजातियां कितनी जल्दी विलुप्त हो सकती हैं। प्रजातियों के लिए कई अन्य खतरे मौजूद हैं, जैसे - प्राकृतिक आवास का नुकसान, वन्य जीवों का व्यापार, आक्रामक प्रजातियां, और हाल ही में, जलवायु परिवर्तन। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण की स्थिति बदलती है, वैसे-वैसे प्रजातियों को अपने वर्तमान प्राकृतिक आवासों से अनुकूलन करना या संभावित रूप से पलायन करना पड़ता है। फिर भी पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका को अन्य प्रजातियों द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है, जिसके अन्य प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के लिए — जलवायु परिवर्तन पहले से ही मधुमक्खियों पर तनाव बढ़ा रहा है, जिससे सर्दियों में होने वाली मधुमक्खियों की संख्या में कमी के नुकसान की भरपाई करना कठिन हो गया है। इन जटिल गतिकी को समझने में भी वर्षों लग सकते हैं, जैसा कि हाल ही में 25 वर्षों के डेटा का उपयोग करके दर्शाया गया है कि जलवायु-प्रेरित भोजन की कमी के कारण किस तरह से चमगादड़ मानव-वर्चस्व वाले आवासों में चले गए, जिसके परिणामस्वरूप जूनोटिक रोग का प्रकोप हुआ है (ईबी एवं अन्य, 2022)।
यह लेख पहली बार अंग्रेजी में VoxDev पर प्रस्तुत किया गया था।
टिप्पणी:
- डिक्लोफेनाक, गाउट जैसे दर्द और सूजन संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक नॉनस्टेरॉइडल सूजनरोधी दवा है।
- इसके अलावा पारसी समुदाय के दफन संस्कारों के लिए गिद्ध बेहद महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें एडजस्ट करना पड़ा है। और कुछ मामलों में तो लंबे समय से चली आ रही उनकी दफन परंपराओं को छोड़ना भी पड़ा है।
लेखक परिचय: अनंत सुदर्शन यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक के अर्थशास्त्र विभाग में फैकल्टी हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) में सीनियर फेलो हैं। इयालफ्रैंक हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में असोसिएट प्रोफेसर हैं।
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