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पुरुषों के प्रवासन का महिलाओं के राजनीतिक जुड़ाव पर प्रभाव

 

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Rithika Kumar

University of Pennsylvania

rithikak@sas.upenn.edu

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I पर चल रहे अभियान के अंतर्गत आईएचडीएस तथा बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में किए गए एक सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग कर रितिका कुमार ने पाया है कि प्रवासन के कारण पुरुषों की अनुपस्थिति से भारत के ग्रामीण क्षेत्र की दैनिक राजनीतिक में महिलाओं जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। यह एक वैकल्पिक मार्ग के माध्यम से हुआ है: आर्थिक रूप से परिवार पर निर्भर रहने के बावजूद महिलाएं सशक्त हैं। परंतु वे पाती हैं कि इस सकारात्मक प्रभाव को प्रवासी पुरुषों की समय-समय पर अपने घर वापसी और संयुक्त परिवार पद्धतियों का प्रभुत्व बाधित करता है और पारिवारिक गतिशीलता को मौलिक रूप से नहीं बदलता है।

मेरी मुलाकात दक्षा देवी से तब हुई जब वे बिहार के अररिया शहर के सिविल कोर्ट में कुछ अन्य महिलाओं के साथ एक बेंच पर बैठी थीं। वे पार्किंग स्थल पर अपने वकील का इंतजार कर रही थी, जो पास के ही एक पेड़ के नीचे टेबल पर अपने मुवक्किलों के साथ सलाह मशविरा कर रहे थे। अपने जूट के बैग में रखा शपथ-पत्र दिखाते हुए उसने मुझे बताया कि उस दिन वह अदालत में एक पारिवारिक विवाद के संबंध में आई थी जिसके कारण उसके परिवार के खिलाफ दस से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। उनके मालिक साब (उनके पति) दिल्ली में प्रवासी थे जो दिल्ली में परिवार के लिए कमाई कर रहे थे, और उसी समय वे इस मामले के लिए वकीलों के साथ कागजी कार्रवाई की व्यवस्था कर रही थी और अदालती सुनवाई में भाग ले रही थी। दक्षा देवी प्रवासी परिवारों की उन लाखों महिलाओं में से एक हैं जो राज्य के साथ परिवार के प्राथमिक वार्ताकार के रूप में काम करती हैं। अदालत, ब्लॉक कार्यालय, गाँव के चौराहों और पंचायत भवनों – जैसे पारंपरिक रूप से पुरुषों के वर्चस्व वाले अखाड़ों में इन महिलाओं की उपस्थिति से पितृसत्तात्मक संदर्भों में स्थानीय राजनीति से जुड़ाव और प्रवासियों को दूर के शहरों में भेजने वाले समुदायों के बदलाव का प्रतीक नजर आता है।

भारत में ऐसे 10 करोड़ से भी अधिक लोग आर्थिक कारणों से प्रवासन करते हैं जिन्हें साल के कई महीने अपने घर से दूर रहना पड़ता है । एक ओर जहां प्रवासीयों पर अध्ययन न के बराबर होता है, हम इनके द्वारा पीछे छोड़ दी गई दक्षा देवी जैसी महिलाओं के राजनीतिक जीवन के बारे में बहुत कम जानते हैं। इस लेख में मैं आर्थिक कारणों से प्रवासन के एक स्पष्ट लेकिन बहुत कम समझे गए तथ्य को अंकित करती हूं कि यह पितृसत्तात्मक परिवारों से 'पुरुषों की अनुपस्थिति' का एक रूप है, जिसका प्रभाव महिलाओं के राजनीतिक जीवन पर पड़ता है। मेरा तर्क है कि महिलाओं के जीवन से पुरुषों की नियमित लेकिन अस्थायी अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप प्रवासि भेजने वाले समुदायों में रोज़मर्रा की राजनीतिक व्यस्तता का नारीकरण हो रहा है।

दुनिया भर के अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं कि पारिवारिक गतिशीलता तथा परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों के बीच संसाधनों का असमान वितरण महिलाओं के राजनीति से जुड़ाव के निचले स्तर को दर्शाता है (वर्बा और नी 1972, इवरसेन और रोजेनब्लथ 2010, ब्रुले 2020, खान 2021)। लिंग-पक्षपाती मानदंडों वाले पितृसत्तात्मक समाजों में, परिवार के पुरुष सदस्य परिवार में अपनी उच्च स्थिति बनाये रखते हैं और परिवार के बाहर भी महिला की उपस्थिति पर नजर रखते हैं (अग्रवाल 1997, जयचंद्रन 2015), जिसमें राजनीतिक क्षेत्र भी शामिल है (गोटलिब 2016, प्रिलमैन 2021, चीमा एवं अन्य 2021)। इस लेख में मेरा तर्क है कि प्रवासन के कारण पुरुष द्वारपालों की अनुपस्थिति भले ही अस्थायी हो, यह महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण और अनदेखा प्रेरक है।

आंकड़ा और कार्यपद्धति

मेरे तर्क के पीछे आंकड़ा संग्रह के कई रूपों और मिश्रित-तरीकों का दृष्टिकोण है। सबसे पहला, मैं अपनी सैद्धांतिक अपेक्षाओं को दर्शाने के लिए, बिहार के ग्रामीण क्षेत्र, जो भारत में आंतरिक प्रवासियों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, से अभिजात वर्ग और प्रवासी-भेजने वाले समुदायों में निवासी पुरुषों और महिलाओं के साथ 70 से अधिक अर्द्ध संरचित साक्षात्कारों के जरिये एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करती हूं। इसके बाद, मैं इन अपेक्षाओं की जाँच करने के लिए एक बड़े राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधि पैनल डेटासेट (आंकड़ा समुच्चय) - भारतीय मानव विकास अध्ययन (आईएचडीएस) के वर्ष 2005-06 और 2011-12 के आंकड़ों का उपयोग करती हूं। मैं इस डेटासेट का उपयोग करते हुए, प्रवासन में स्व-चयन के कारण अंतर्जातता के प्रचलित मुद्दों को दूर करने के लिए डिफरेंस-इन-डिफरेंस फ्रेमवर्क1 का उपयोग करती हूं। यह फ्रेमवर्क मुझे महिलाओं के निजी और राजनीतिक जीवन पर पडने वाले प्रवासन के प्रभाव का आकस्मिक अनुमान प्रदान करने के लिए, आईएचडीएस डेटासेट के दूसरे दौर में प्रवासी पतियों के साथ महिलाओं और दोनों दौर में सह-निवासी पतियों के साथ महिलाओं की तुलना करने में सक्षम बनाता है। अंत में, उपर्युक्त विश्लेषण के परिणामों की पुष्टि करने के लिए, मैंने पुरुष प्रवासन और महिलाओं के राजनीति से जुड़ाव के अधिक समृद्ध और प्रासंगिक रूप से संवेदनशील मापों के साथ, स्वयं भी बिहार में अररिया जिले के 150 गांवों की 1,900 महिलाओं का सर्वेक्षण किया है।

महिलाओं राजनीतिक जुड़ाव के माप

मैं आईएचडीएस में उपयोग किए जाने वाले कई मापों के साथ महिलाओं के राजनीति से जुड़ाव को मापती हूं, जिसमें परिवार के भीतर राजनीतिक चर्चा, लाभों का ज्ञान, राजनीतिक दलों की सदस्यता और सार्वजनिक बैठकों में उपस्थिति शामिल है। मेरे अपने सर्वेक्षण में महिलाओं के कार्य से जुड़े रहने के अन्य नियमित रूपों पर विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है, जिसमें विभिन्न सेवाओं के लिए दावा प्रस्तुत करना या स्थानीय नौकरशाहों, ग्राम प्रधानों जैसे अन्य मध्यस्थों के साथ संपर्क करना शामिल है। मैं स्थानीय राज्य संस्थानों के दौरे और राजनीति में भाग लेने की प्रवृत्ति जैसे अन्य विषयों के बारे में भी जानकारी एकत्र करती हूं।

पुरुष प्रवासन के संदर्भ में महिलाओं के राजनीति से जुड़ाव का कारण बनने वाले संभाव्य तंत्र पर साक्ष्य प्रदान करने के लिए मैं तीन मुख्य सूचकांकों का उपयोग करती हूं: गतिशीलता (स्थानीय सीमाओं को पार करने की क्षमता), निर्णय लेना (महत्वपूर्ण पारिवारिक निर्णय मान लीजिए) और परिवार में दर्जा (वित्तीय संसाधन तक पहुंच और परिवार के दूसरों के साथ बैठकर खाना खाने की क्षमता)।

साक्षात्कारों के अनौपचारिक साक्ष्यों  ने दर्शाया कि परिवार मुख्य रूप से वित्त प्रबंधन के लिए वित्त-प्रेषण पर निर्भर थे। महिलाएं कृषि कार्य या पशुपालन के माध्यम से पारिवारिक आय का पूरक हो सकती हैं लेकिन परिवार के लिए आर्थिक रूप से स्थिरता प्रदान करने की जिम्मेदारी पुरुष पर टिकी हुई है। अररिया के पलासी ब्लॉक की एक निवासी ने कहा, “जब तक मेरे पति सक्षम हैं, वे परिवार के लिए कमाएंगे” इसके अलावा, महिलाओं के पास उनके पति की अनुपस्थिति में कृषि, परिवार और बच्चों की देखभाल के काम की अतिरिक्त जिम्मेदारियों के कारण आय-सृजन की गतिविधियों में भाग लेने के कम अवसर होते हैं। इसलिए, परिवार में श्रम का पारंपरिक विभाजन प्रवासी परिवारों में बना हुआ प्रतीत होता है, जिससे महिलाओं को आय-सृजन गतिविधियों में भाग लेने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। मैं काम के तीन अलग-अलग रूपों पर प्रवासन के प्रभाव को माप कर इसका परीक्षण करती हूं: i) कृषि कार्य, ii) गैर-कृषि व्यवसाय, और iii) दिहाड़ी मजदूरी। मैं इस विश्लेषण का उपयोग यह तर्क देने के लिए करती हूं कि पुरुष प्रवासन एक वैकल्पिक मार्ग को सक्रिय करता है जिसमें महिलाओं को राजनीतिक रूप से संलग्न होने के लिए आर्थिक रूप से सशक्त होने की आवश्यकता नहीं होती है।

जाँच के परिणाम

व्यवस्था (राज्य) और स्थानीय राज्य प्राधिकारियों के साथ नियमित जुड़ाव ग्रामीण भारत में कल्याण सेवाओं तक पहुँचने का एक अभिन्न अंग है। आईएचडीएस के प्रेक्षणात्मक डेटा से पता चलता है कि पुरुष प्रवासन के कारण महिलाओं की उनके पतियों के साथ राजनीतिक चर्चा और घर के बाहर उनके नागरिक ज्ञान और जुड़ाव की संभावना 10% तक बढ़ जाती है। इन परिणामों की मेरे अपने सर्वेक्षण से अधिक विस्तृत उपायों द्वारा पुष्टि की जाती है। प्रवासी परिवारों में ये महिलाएं ही हैं जो परिवार की ओर से व्यवस्था (राज्य) के साथ जुड़ने की भूमिका में कदम रख रही हैं। मैंने पाया कि अपने अधिकारों के लिए दावा करने और सेवाओं तक पहुंचने के लिए स्थानीय राज्य प्राधिकारियों और अन्य नौकरशाहों से संपर्क करने की प्रवासियों की पत्नियों की संभावना औसतन 17% अधिक है (आकृति 1)। ये परिणाम भी मौलिक रूप से सार्थक हैं; ये शिक्षा जैसे राजनीतिक जुड़ाव के अन्य अच्छी तरह से स्थापित कारकों के कारण उनके प्रभाव के आकार को छुपाते हैं।

आकृति 1. स्थानीय राज्य प्राधिकारियों के साथ महिलाओं द्वारा संपर्क, इसे उनके दावा सूचकांक के जरिये द्वारा मापा गया है


टिप्पणियाँ: i) दावा सूचकांक कल्याणकारी प्रावधान के लिए किसी व्यक्ति द्वारा संपर्क किए गए राज्य प्राधिकारियों का एक योगात्मक माप है। ii) लाल ग्राफ राज्य के साथ संपर्क बनाने वाले प्रवासी पतियों वाली महिलाओं को दर्शाता है, और नीला ग्राफ इसी समान अपने पतियों के साथ सह-निवास करने वाली महिलाओं को दर्शाता है। iii) अररिया, बिहार में एन=1904 (प्रतिदर्श) महिलाएं (प्रवासी और गैर-प्रवासी पतियों के साथ)।

स्रोत: लेखक का अपना सर्वेक्षण (2022)

विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि पुरुष प्रवासन महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में धकेलता है, और चूँकि वे नियमित रूप से स्थानीय सीमाओं को पार करती हैं उनका संपर्क विविध समूह के लोगों के साथ होता है। अधिक गतिशीलता महिलाओं को उन सूचनाओं तक पहुंच प्रदान करती है जिनके बारे में उन्हें अन्यथा जानकारी नहीं होती है। इस जानकारी का उपयोग महिलाओं द्वारा सेवाओं की मांग करने और घरेलू चर्चाओं में योगदान देने के लिए किया जाता है, जिसमें राजनीति पर चर्चा भी शामिल है। परिवार के भीतर मैं महिलाओं के निर्णय लेने और नकदी तक पहुंच में शामिल होने के संदर्भ में पूरक बदलाव पाती हूं।

इस अध्ययन के परिणाम ठोस और स्पष्ट हैं: पुरुषों का प्रवासन राज्य के साथ महिलाओं के राजनीतिक जुड़ाव में वृद्धि कर रहा है।

पीछे रह गईं या आगे निकल गईं: प्रासंगिक निष्कर्ष

भले आंतरिक पुरुष प्रवासन के कारण महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के अवसर स्पष्ट हैं, तीन कारणों से महिलाओं के जीवन पर इसका अधिक जटिल प्रभाव पड़ने की संभावना है। पहला, प्रवासन से परिवार के भीतर श्रम के पारंपरिक विभाजन में मूलभूत परिवर्तन नहीं होता है। वास्तव में, पुरुष प्रवासन महिला श्रम-बल की भागीदारी की मांग को कमजोर करता है: मैंने पाया कि सह-निवासी पतियों वाली महिलाओं की तुलना में प्रवासी पतियों वाली महिलाओं की आय-सृजन की गतिविधियों में भाग लेने की संभावना 2-7% कम है क्योंकि पारिवारिक और कृषि श्रम मांगों में वृद्धि के चलते या तो उनके पास बहुत कम समय बचता है या फिर समय नहीं होता। इसलिए प्रवासी पतियों की विवाहित महिलाओं को पर्याप्त वित्तीय स्वायत्तता का अवसर नहीं मिलता। यह एक महत्वपूर्ण परिणाम के रूप में है क्योंकि परिणाम से इस मौजूदा सिद्धांतों का खंडन होता है जिसमें यह कहा जाता है कि महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए आर्थिक स्वायत्तता एक शर्त के रूप में है।

दूसरा, भारत में आंतरिक पुरुष प्रवासन की प्रकृति अस्थायी है। पुरुष समय-समय पर घर लौटते हैं और दूर रहते हुए भी घर के समुदायों के साथ संबंध बनाए रखते हैं। मैंने पाया है कि उनके पति की वापसी पर, महिलाओं की गतिशीलता और उनकी परिवार में वित्तीय संसाधनों तक पहुंच फिर सिमट जाती है। फिर भी पूरा सशक्तिकरण नहीं जाता, क्योंकि प्रवासी पत्नियां अपने पति की वापसी के बाद भी प्रमुख पारिवारिक खर्च और राजनीतिक चर्चाओं में भाग लेना जारी रखती हैं। चूँकि महिलाओं ने घर से संबंधित गतिविधियों के प्रबंधन से विशेषज्ञता और ज्ञान हासिल किया है, पुरुषों के लौटने के बाद भी निर्णय लेने के लिए उन पर भरोसा करने की संभावना बनी रहती है। ये निष्कर्ष पुरुष प्रवासन के बाध्यकर लेकिन महत्वपूर्ण लैंगिक राजनीतिक प्रभाव को दर्शाते हैं।

तीसरा, पुरुष प्रवासन परिवार की यथास्थिति में व्यवधान पैदा करता है जो महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में धकेल कर मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देता है। तथापि, इस अवसर का उपयोग करने की महिलाओं की क्षमता पितृसत्तात्मकता की प्रथा से बाधित होती है, जहाँ महिलाएँ अपने पति के घरों में चली जाती हैं और अपने विस्तारित परिवार के साथ रहती हैं। मैंने पाया कि वृद्ध पुरुष और महिला परिवार के सदस्यों की उपस्थिति पुरुष प्रवासन के कारण महिलाओं के राजनीतिक जुड़ाव के लाभ को कम कर देती है। उनके प्रवासी पतियों की अनुपस्थिति परिवार के बाहर महिला उपस्थिति पर घरेलू पदानुक्रम और सामाजिक मानदंडों के गढ़ को दूर करने के लिए अपर्याप्त है।

निष्कर्ष

भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार से संबंधित पुरुष प्रवासन के बावजूद, हम उन महिलाओं के राजनीतिक जीवन के बारे में बहुत कम जानते हैं जिन्हें ये पुरुष अक्सर पीछे छोड़ जाते हैं। मेरा तर्क है कि प्रवासन से प्रेरित पुरुष अनुपस्थिति उन क्षेत्रों में महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए एक वैकल्पिक मार्ग को सक्रिय करती है जहाँ मौजूदा संसाधन-आधारित स्पष्टीकरण महिलाओं की खराब राजनीतिक भागीदारी को अभिव्यक्त नहीं कर सकते हैं। प्रवासी-भेजने वाले समुदायों में राजनीतिक अंतर्क्रिया की दैनिक प्रथाओं का नारीकरण तब भी होता है जब घरेलू श्रम का पारंपरिक विभाजन बरकरार रहता है; महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने या अधिक राजनीतिक जुड़ाव के लिए एक शर्त के रूप में घर के बाहर अपनी पहचान विकसित करने की जरुरत नहीं है।

इस तरह के बड़े परिवर्तनों में अक्सर पुरुषों की स्थायी अनुपस्थिति सहित, परिवार को महसूस करने के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण झटके की आवश्यकता होती है। मैं दर्शाती हूं कि अस्थायी अनुपस्थिति भी जो इस तरह के बड़े संरचनात्मक सुधार नहीं देती है, फिर भी बेहतर राजनीतिक जुड़ाव के अवसर खोलती है। पुरुष प्रवासन निर्णय लेने के संबंध में पारिवारिक गतिशीलता में स्थायी परिवर्तन लाता है। हालांकि, पुरुष प्रवासन वित्तीय असमानता के घरेलू ढांचे, सदस्यों के बीच के पदानुक्रम और परिवार से बाहर महिलाओं की उपस्थिति के आसपास के मानदंडों को मौलिक रूप से बदलने में असमर्थ है, जो पुरुषों के लौटने के बाद भी अपरिवर्तित रहते हैं।

टिप्पणी:

  1. डिफरेंस-इन-डिफरेंस एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना करने के लिए किया जाता है, जहां इस मामले में, एक ने अर्थात प्रवासी पति के साथ किसी घटना का अनुभव किया, और दूसरे ने नहीं किया।


लेखक परिचय: रितिका कुमार यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया में राजनीति विज्ञान में पीएचडी की छात्रा हैं। 


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