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सुप्रीम कोर्ट : गर्भावस्था के दौरान माता-पिता के साथ रहना तलाक का कारण नहीं हो सकता

 Law- What is and What ought to be?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गर्भावस्था के दौरान अगर कोई महिला ससुराल के बजाय अपने माता-पिता के साथ रहती है तो यह तलाक का आधार नहीं हो सकता. इसे उसका पति ‘क्रूरता की श्रेणी’ में नहीं रख सकता. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने यह फैसला सुनाया है.

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह बहुत स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की पत्नी गर्भवती थी. इसलिए वह अपने माता-पिता के घर चली गई. यह स्वाभाविक था. याचिकाकर्ता की पत्नी ने यह भी स्पष्ट किया है कि उसकी गर्भावस्था और बच्चे का जन्म बड़ी मुश्किल से हुआ. इसीलिए अगर उसने बच्चे के जन्म के बाद कुछ और समय माता-पिता के पास रहने का फैसला किया, तो इसमें किसी को क्यों परेशानी होनी चाहिए. महज इसी आधार पर मामला तलाक के लिए अदालत में कैसे ले जाया जा सकता है.

लेकिन पति ने यह नहीं सोचा. उसने थोड़ा भी इंतजार नहीं किया. उसने यह भी नहीं सोचा कि वह एक बच्चे का पिता बन चुका है. इस तथ्य को नजरंदाज किया कि उसकी पत्नी के पिता का निधन हो गया और तलाक के लिए अदालत में याचिका लगा दी. इन स्थितियों को पत्नी की क्रूरता कैसे माना जा सकता है.’ हालांकि अदालत ने इस दंपति के तलाक को भी इस आधार पर मंजूरी दे दी कि दोनों का विवाह-संबंध अब मृतप्राय हो चुका है. दोनों 22 साल से अधिक समय से अलग रह रहे हैं. पति भी दूसरी शादी कर चुका है. इसलिए बेहतर होगा कि इस रिश्ते को खत्म माना जाए. अदालत ने इस फैसले के साथ ही याचिकाकर्ता से कहा कि वह पूर्व पत्नी को 20 लाख रुपये का मुआवजा अदा करे.

मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में की गई थी अपील

ये मामला तमिलनाडु का है. इसमें याचिकाकर्ता का विवाह 1999 में हुआ. इसके कुछ समय बाद ही गर्भवती होने पर उसकी पत्नी अपने माता-पिता के पास चली गई. वहां उसके बच्चे का जन्म अगस्त 2000 में हुआ. इसी बीच, फरवरी 2001 में उसके पिता का निधन हो गया. इस कारण वह कुछ अधिक समय तक ससुराल वापस नहीं लौट सकी. इसी आधार पर पति ने परिवार न्यायालय (Family Court) में तलाक के लिए याचिका लगा दी. साथ ही, अक्टूबर 2001 में दूसरी शादी भी कर ली. परिवार न्यायालय ने 2004 में उसका तलाक मंजूर किया. लेकिन मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए इस फैसले को पलट दिया. इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका लगाई थी.

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