सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने शुक्रवार को कहा कि बैंक कर्मचारी विश्वास का पद धारण करते हैं, जहां ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा आवश्यक शर्त हैं तथा उनकी ओर से की जाने वाली किसी अनियमितता (Irregularity by bank employees) से नरमी से नहीं निपटा जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कर्तव्यों के निर्वहन में गंभीर अनियमितता को लेकर एक बैंक क्लर्क को बर्खास्त करने का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की.
पीठ ने कहा, ‘‘महज इसलिए कि कर्मचारी इस बीच सेवानिवृत्त हो गया, उसे अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान किये गये कदाचार से आरोपमुक्त नहीं किया जा सकता है और उसके कदाचार की प्रकृति को देखते हुए वह किसी छूट का हकदार नहीं है.’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘बैंक कर्मचारी हमेशा ही विश्वास का पद धारण करते हैं जहां ईमानदारी और सत्यनिष्ठा आवश्यक शर्त है और इस तरह के विषयों से नरमी से निपटने की कभी सलाह नहीं दी जा सकी. ’’
यह कर्मचारी 1973 में क्लर्क-टाइपिस्ट के पद पर सेवा में भर्ती हुआ था. सेवाकाल के दौरान अपने कर्तव्यों के निर्वहन में उसने गंभीर अनियमितायें की जिस वजह से सात अगस्त, 1995 को उसे निलंबित कर दिया गया था.
उसे बाद मं दो मार्च, 1996 को आरोपों के विवरण के साथ आरोप पत्र दिया गया था. बैंक के अनुशासन नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक जांच हुयी जिसमे जांच अधिकारी ने आरोपों को सही पाया. इसके बाद उसे छह दिसंबर, 2000 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.
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