इस वर्ष जनवरी में आई 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' कहीं खुशी, कहीं निराशा और कहीं चिंता जाहिर करती है।
एक नजर यदि पूरी दुनिया के जंगलों पर डालें, तो हमें अंधाधुंध विकास की कीमत का अंदाजा हो जाएगा और यह भी कि पूरी मानवीय सभ्यता आखिर जा किस दिशा में रही है। प्रश्न है कि जंगल और उसकी संपदा के बूते 'मॉडर्न वर्ल्ड' की हर नवीनतम तकनीक की सूचना रखने वाले लोगों को क्या यह भी पता है कि दुनिया के जंगल किस तेजी से सिकुड़ रहे हैं।
विश्व स्तर पर हर साल लगभग एक करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र घट रहा है। जाहिर है कि विकास के लिए भारत में भी जंगल कटता है, लेकिन इस वर्ष जनवरी में आई 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' कहीं खुशी, कहीं निराशा और कहीं चिंता जाहिर करती है। ऐसा इसलिए कि भारत में 2,261 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र की वृद्धि कुछ हद तक आश्वस्त करती है। लेकिन, इस मामूली वृद्धि को इस तथ्य के साथ दर्ज किये जाने की आवश्यकता है कि वनावरण क्षेत्र देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का महज 24 प्रतिशत ही रह गया है।
वहीं, पिछले दस वर्षों में देश में 52 टाइगर रिजर्व के वन क्षेत्र में 22.62 वर्ग किलोमीटर की गिरावट आई है, जो बाघ संरक्षण के लिए एक नई चुनौती है। जाहिर है जहां बाघ हैं वहां का भी जंगल कट रहा है। यह तथ्य हमें यह एहसास दिलाने के लिए काफी है कि वन क्षेत्र नहीं बचा, तो हमारी वन विरासत भी नहीं बच पाएगी।
पारिस्थितिक संतुलन के लिए चाहिए जंगल
सामान्य: तथ्यों से ऐसा लग सकता है कि अभी तो हमारे पास काफी जंगल बचा हुआ है, इसलिए इस तरह की रिपोर्ट और आलेख प्रकाशित होना मानो एक रूटीन का भाग है। लेकिन, घटते वनों के पूरे परिदृश्य को समझना है, तो हमें पारिस्थितिक संतुलन की अवधारणा को भी जान लेना चाहिए। दरअसल, पारिस्थितिक संतुलन के लिए वनों को कुल भूमि क्षेत्र पर 33 प्रतिशत की आवश्यकता होती है, जबकि हमारे पास कुल भूमि क्षेत्र पर लगभग 24 प्रतिशत जंगल शेष है। पारिस्थितिक संतुलन के मुताबिक पूरी दुनिया में जहां-जहां जंगल है, उसे हिस्से में दुनिया के 80 प्रतिशत जीव-जंतुओं का रहवास है। इन्हीं वनों, वन्य-जीवों और संपदाओं पर मनुष्य का अस्तित्व निर्भर है।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण बड़े पैमाने पर हो रही वनों की कटाई से कोई इंकार नहीं कर सकता है। प्रकृति के बिगड़ते चक्र और ग्लोबल वार्मिंग का असर पहले से ही महसूस किया जा रहा है। 'संयुक्त राष्ट्र' द्वारा पिछले साल जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, ''एक तिहाई संक्रामक रोग वनों की कटाई के कारण होते हैं।"
इन प्रभावों का परिणाम जलवायु परिवर्तन पर पड़ता है। यही वजह है कि सरकारों द्वारा वन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लिहाजा, पिछले कुछ वर्षों में भारत में सामाजिक वानिकी, वन उत्सव, वृक्षारोपण जैसी योजनाओं को गंभीरता से लागू किया गया है।
1987 से हो रहा वन क्षेत्र का अध्ययन
भारत में कई वर्षों से जारी सामाजिक वानिकी, वन उत्सव, वृक्षारोपण जैसी योजनाओं का सकारात्मक असर अब दिखना शुरू हो रहा है, जिसकी पुष्टि हाल में प्रकाशित 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' से होती है। बता दें कि अपने देश में वन क्षेत्र का अध्ययन वर्ष 1987 से प्रारंभ हुआ। यह अध्ययन प्रत्यक्ष सर्वेक्षण और उनसे प्राप्त जानकारी के आधार पर किया जाता है।
90 के दशक से इस दिशा में उपग्रह इमेजरी, साथ ही रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीक का उपयोग भी किया जा रहा है। कुल वन वृक्ष के मुकाबले यदि 10% से कम वृक्षारोपण हो तो उसे 'जंगल' की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। जाहिर है कि किसी स्थान का जंगल बचाने के लिए उस स्थान पर 10% से अधिक वृक्षारोपण की दरकार होती है।
इसी तरह, वन क्षेत्र को 'झाड़ी वन', 'दुर्लभ वन', 'मध्यम सघन वन' और 'अत्यंत सघन वन' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 'भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट' हर दो साल में प्रकाशित होती है, जिससे देश भर में वन क्षेत्र की स्थिति के बारे में अपडेट किया जा सके। जैसा कि कहा जा चुका है कि इस साल जारी रिपोर्ट ने भारत को थोड़ी राहत दी है। हालांकि, इस रिपोर्ट में वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण एक प्रमुख मुद्दा है। इसलिए, राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार के लिए भी यह रिपोर्ट इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण है कि वह इस चुनौती से कैसे निपटेगी।
मध्य-प्रदेश सूची में सबसे ऊपर
बता दें कि देश का वन और वृक्ष आच्छादन क्षेत्र 8.09 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, वर्ष 2019 की तुलना में इसमें 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। अब तक एक अच्छी बात यह है कि भारत के 17 राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों में उनके भौगोलिक क्षेत्र के 33% से अधिक भाग पर वन हैं। मध्य-प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।
हालांकि, सबसे बड़े वन क्षेत्र वाले मध्य-प्रदेश में पिछले दो वर्षों में वन क्षेत्र के दौरान गिरावट देखी गई है। 'सघन' और 'अत्यंत सघन' वन क्षेत्र की दोनों श्रेणियों में क्रमश: 11 और 132 वर्ग किलोमीटर तक वनों की कटाई चौंकाती है। दूसरी तरफ, महाराष्ट्र में 20 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र की वृद्धि सुखद लगती है। यहां 'सघन' और 'अत्यंत सघन' वन क्षेत्र की दोनों श्रेणियों में क्रमश: 13 और 17 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। जाहिर है कि इसमें पिछले दस वर्षों में महाराष्ट्र में लागू की गई वृक्षारोपण योजना ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
देश के विभिन्न राज्यों द्वारा वन क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास किए गए। महाराष्ट्र के अलावा पांच राज्यों में भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक 647 वर्ग किलोमीटर, उसके बाद तेलंगाना 632 वर्ग किलोमीटर, ओडिशा 537 वर्ग किलोमीटर, कर्नाटक 155 वर्ग किलोमीटर और झारखंड 110 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा है। हालांकि, पूर्वोत्तर राज्यों के प्रदर्शन में गिरावट आई है। अरुणाचल प्रदेश ने 257 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र खो दिया है। फिर मणिपुर 249 वर्ग किलोमीटर, नागालैंड 235 वर्ग किलोमीटर, मिजोरम 186 वर्ग किलोमीटर और मेघालय 73 वर्ग किलोमीटर जंगल कटा है।
पूर्वोत्तर राज्यों में घट रहा जंगल
पूर्वोत्तर राज्यों में वन क्षेत्र एक हजार 20 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है और अब इन राज्यों में कुल वन क्षेत्र एक लाख 69 हजार 521 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश के पर्वत, पहाड़ी और आदिवासी जिलों में वन क्षेत्र घटा है। पिछले दो वर्षों में देश के पर्वतीय क्षेत्रों में वनावरण में 902 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश का वन भंडार 79.4 मिलियन टन है। वर्ष 2019 के बाद से इसमें 7,204 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। वहीं, बाघ संरक्षण क्षेत्र देश के कुल वन क्षेत्र का 7.8 प्रतिशत है। भारत में 52 बाघ परियोजनाओं में से 20 बाघ परियोजनाओं के वन क्षेत्र में वृद्धि हुई है और 32 बाघ परियोजनाओं के वन क्षेत्र में कमी आई है। बाघ के रास्ते में जंगल 11 हजार 575 वर्ग किलोमीटर है। रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग को भी देखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेशों में तापमान बढ़ गया है।
वहीं, महाराष्ट्र में बांस के आवरण एक हजार 882 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है। मध्य-प्रदेश के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है। 2019 में राज्य का पंजीकृत बांस क्षेत्र 15,408 वर्ग किलोमीटर था, जो 2021 में 13 हजार 526 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
बेशक गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर-प्रदेश जैसे राज्य अन्य राज्यों की तुलना में अधिक वन विरासत संरक्षित कर रहे हैं। लेकिन, इस साल की रिपोर्ट में इन राज्यों को भी वन विरासत संरक्षित करने के लिए अपने प्रयासों को तेज करने की चेतावनी दी गई है।
(शिरीष खरे पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार व लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
SOURCE ; newsclick.in
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