यह बड़ी विचित्र स्थिति और गंभीर विचार का विषय है। एक व्यक्ति को 1982 में सजा सुनाई गई थी और उसकी अपील पर फैसला 40 साल बाद आता है और वह बरी हो जाता है। वह अकेला दोषी नहीं था, तीन और लोग थे, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में चार दशक पहले दायर एक अपील पर फैसला सुनाते हुए दोषी राजकुमार को सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
अपराध 1981 में हुआ था। 1982 में सत्र न्यायालय का फैसला आया और अपील का निपटारा 2022 में किया गया। राजकुमार ने इतने साल जेल में बिताए। वह जेल से बाहर आ जाएगा लेकिन अब उसका जीवन आसान नहीं होगा क्योकि यह फैसला आने में 40 साल लग गए। दुर्भाग्य से इस तरह का यह पहला मामला नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्वीकार किया है कि समय पर न्याय नहीं दे पाने की वजह से आरोपी को जेल में बंद रखना अन्याय है। राजकुमार के मामले में यह अन्याय और भी बढ़ गया है। 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने खुर्शीद अहमद मामले में 10 हाईकोर्ट को यह बताने के लिए कहा था कि कितनी आपराधिक अपीलें लंबित हैं, अभियुक्तों की स्थिति और मामलों के त्वरित निपटान के लिए अपनाई जा रही रणनीति।
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