चंपावत ज़िले के एक सरकारी स्कूल की दलित रसोइए द्वारा बनाए मध्याह्न भोजन को कथित उच्च जाति के छात्रों के खाने से इनकार के बाद उन्हें काम से हटा दिया गया था. मुख्य शिक्षा अधिकारी ने बताया कि उन्हें नियुक्ति में सही प्रक्रिया का पालन न होने के चलते हटाया गया था. अब उचित प्रक्रिया के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया है.
देहरादून/पिथौरागढ़: उत्तराखंड के चंपावत जिले के सुखीढांग में स्वतंत्र संग्राम सेनानी स्वर्गीय श्री रामचंद्र राजकीय इंटर कॉलेज की बर्खास्त दलित रसोइया सुनीता को बहाल कर दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुनीता द्वारा एससी/एसटी एक्ट और आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत शिकायत दर्ज कराने के तुरंत बाद जिला प्रशासन ने उन्हें बहाल करने की घोषणा की.
चंपावत के मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) आरसी पुरोहित ने कहा कि सुनीता देवी शीतकालीन अवकाश के बाद 16 जनवरी से काम करना शुरू कर देंगी.
उन्होंने कहा, ‘पहले उन्हें हटा दिया गया था क्योंकि उनकी नियुक्ति के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. अब उन्हें उचित प्रक्रिया के बाद बहाल कर दिया गया है.’
32 वर्षीय सुनीता ने कहा कि उन्हें अपनी बहाली के बारे में सूचना मिली है. उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि इस बार कोई परेशानी नहीं होगी. मैं आशांवित भी हूं और अनिश्चित भी.’
सुनीता की शिकायत के आधार पर 30 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. चंपावत के एसपी देवेंद्र पिंचा ने बताया कि सभी आरोपी सुखीढांग और आसपास के गांवों के हैं और अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.
सुनीता का कहना है कि उन्हें खुद से ज्यादा उनके दो बेटों के लिए दुख हुआ. उन्होंने कहा, ‘उन्हें इन जातियों के विभाजन के बारे में कभी पता नहीं था, लेकिन अब मेरे अपमान के बाद उन्होंने इनके बारे में पूछताछ करना शुरू कर दिया है. उन्हें जरूर बुरा लगा होगा. किसी को भी लगेगा।’
सुनीता की नियुक्ति का विरोध करने वाले माता-पिताओं ने नियम के उल्लंघन का आरोप लगाया था. हालांकि, प्रधानाध्यापक प्रेम सिंह, जो स्वयं एक दलित हैं, ने बताया कि गैर-सामान्य वर्ग (श्रेणी) नियुक्ति को प्राथमिकता देने वाले पद के लिए आधिकारिक मानदंड के बावजूद कथित उच्च जाति के छात्रों के बहुमत वाले स्कूल में पिछले 10 वर्षों से एक भी दलित रसोइया नहीं था.
उन्होंने बताया कि नए रसोइए की तलाश अक्टूबर में शुरू हुई थी, जब कक्षा 6 से 8 (स्कूल 12वीं तक है) के छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार करने वाले दोनों रसोइयों में से एक सेवानिवृत्त हो गया.
सिंह ने कहा कि उन्होंने 28 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर विज्ञापन दिया और छह लोगों ने आवेदन किया जिनमें सामान्य वर्ग के पांच और अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने आवेदन किया था.
प्रेम सिंह ने कहा, ‘नियुक्ति का नियम यह है कि व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) वर्ग का होना चाहिए. लेकिन छह में से कोई भी उस कसौटी पर खरा नहीं उतरा. मैंने स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी, जिसमें माता-पिता शामिल हैं) और अभिभावक-शिक्षक संघ को सूचित किया कि हमें और आवेदन आमंत्रित करने की आवश्यकता है. पिछले विज्ञापन में यह भी उल्लेख नहीं था कि एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी. इसलिए 12 नवंबर को एक नया विज्ञापन जारी किया गया और हमें पांच आवेदन प्राप्त हुए.’
इसके बाद प्रधानाचार्य ने कहा, ‘चार सदस्यीय समिति ने यह पता लगाने के बाद कि वह सभी अहर्ताओं को पूरा करती है सुनीता देवी को चुना, जिनके दो के बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते हैं.
लेकिन पीटीए अध्यक्ष नरेंद्र जोशी ने नियुक्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. प्रिंसिपल सिंह ने दावा किया कि एक बैठक में जहां वह मौजूद नहीं थे, दलित रसोइए पर आपत्ति जताते हुए कुछ अन्य माता-पिता ने जोशी का समर्थन किया. इससे नाराज होकर एससी समुदाय के कुछ अन्य लोग बाहर चले गए.
उन्होंने बताया कि चार दिसंबर को सुनीता का नाम प्रखंड शिक्षा अधिकारी के पास मंजूरी के लिए भेजा गया. चूंकि स्कूल को एक रसोइया की तत्काल आवश्यकता थी, सुनीता ने 13 दिसंबर को काम करना शुरू किया. लगभग दो-तीन दिनों के बाद ही उनके बनाए भोजन का बहिष्कार शुरू हो गया.
मालूम हो कि इस कॉलेज में एक सुनीता को तब बर्खास्त कर दिया गया था, जब छठी से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले कथित अगड़ी जाति के 43 बच्चों ने उनके द्वारा पकाया हुआ खाना खाने से इनकार कर दिया था. 20दिसंबर को सुनीता को काम पर आने से मना कर दिया गया.
तब चंपावत शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने हालांकि उन्हें नौकरी से हटाए जाने का कारण नियुक्ति में प्रक्रियागत चूक को बताया था. इसके कुछ दिन बाद करीब 20 दलित छात्रों ने अनुसूचित जाति की रसोइए को बर्खास्त किए जाने के विरोध में कथित अगड़ी जाति की एक महिला द्वारा बनाया गया मध्याह्न भोजन खाने से इनकार कर दिया था.
मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित का कहना है कि बच्चों ने जातिगत पूर्वाग्रहों के कारण नहीं बल्कि नियुक्ति पर हो रही ‘अहं की लड़ाई’ के चलते खाना खाने से इनकार कर दिया था.
पुरोहित ने कहा, ‘भोजनमाता की नियुक्ति प्राचार्य और एसएमसी द्वारा की जाती है. बाद में उप शिक्षा अधिकारी द्वारा अनुमोदन दिया जाता है. चयन के पहले दौर के बाद अधिक नामों की मांग करने में प्रिंसिपल सिंह गलत थे.’
साथ ही, सीईओ ने स्वीकार किया कि छात्रों के बीच जाति विभाजन अंदर तक बैठा हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए उन्हें समझाना आसान नहीं था क्योंकि वे अपने माता-पिता की अधिक सुनते हैं.’
पीटीए अध्यक्ष जोशी ने उस क्षेत्र में जातिगत पूर्वाग्रह को स्वीकार किया, जहां ब्राह्मणों का दो-तिहाई बहुमत है. हालांकि, उन्होंने जोर देकर कहा, ‘बहिष्कार मुख्य रूप से सुनीता की नियुक्ति के कारण शुरू हुआ क्योंकि माता-पिता एक और नाम पुष्पा भट्ट पर सहमत थे. उनके अनुसार, भट्ट सुनीता की तरह बीपीएल होने के साथ-साथ सिंगल मदर होने के चलते नौकरी पाने के लिए ज्यादा पात्र थीं.
उत्तराखंड एसटी-एसी आयोग ने बहाली नहीं होने पर अदालत जाने की बात कही थी
इससे पहले उत्तराखंड अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग ने आगाह किया था कि यदि सुनीता को फिर से काम पर नहीं रखा गया तो वह अदालत का रुख करेगा.
उत्तराखंड एससी/एसटी आयोग के अध्यक्ष मुकेश कुमार ने गुरुवार को कहा था, ‘मैंने जिला प्रशासन से सुखीढांग इंटर कॉलेज की दलित भोजनमाता सुनीता देवी के साथ न्याय करने का अनुरोध किया है.’
कुमार ने कहा कि उन्होंने प्रशासन से इस मामले से जुड़े लोगों की पहचान करने का भी अनुरोध किया है क्योंकि वे उत्तराखंड के ‘पारंपरिक सामाजिक तानेबाने’ को खराब कर रहे हैं..
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