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आख़िरी नवाब की 2600 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के विवाद का फैसला करेगा सुप्रीम कोर्ट

 Supreme Court of India 

रामपुर के आखिरी नवाब की कुल संपत्ति 26,00 करोड़ से ज्यादा की है। बटवारे को लेकर तक़रीबन 50 वर्ष से विवाद चलता आ रहा है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चूका है सुप्रीम कोर्ट ही अब एक विवाद का निपटारा करेगा।

नवाब रजा अली खान की संपत्ति उनके वारिसों के बीच बंटवारे का मामला कोर्ट में आये 49 वर्षो से ज्यादा हो गए है। बंटवारे के लिए रामपुर की ज़िला अदालत ने सुप्रीम कोर्ट को पार्टीशन स्कीम (partition scheme) भेजी है। निचली अदालत ने 6 दिसम्बर को भेजी गयी एक पार्टीशन स्कीम के जरिये नवाब रज़ा अली ख़ां की संपत्ति को शरिया क़ानून के तहत नवाब के 16 वारिसों में बांटे जाने का सुझाव दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट को अब इसपे अंतिम फैसला लेना है।

सुप्रीम कोर्ट में पहले भी हुई सुनवाई
इस जटिल मामले की सुनवाई पहले भी सुप्रीम कोर्ट में हो चुकी है। करीब ढाई वर्ष पहले 2019 की जुलाई को संपत्ति बंटवारे पर इस्लामी शरई क़ानून के तहत समुचित फ़ैसला लेने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने ही रामपुर की जिला अदालत को आदेश दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले सम्पति के बटवारे को लेकर हुई कानूनी विवाद में निचली अदालत और हाईकोर्ट ने नवाब रज़ा अली ख़ान  के बड़े बेटे मुर्तज़ा अली ख़ान और उनके वारिसों को संपत्ति का हक़दार माना था। केस में दूसरे पक्षकारों ने विवाद में मुर्तज़ा अली ख़ान के वारिसों पर नवाब साहब के बड़े बेटे मुर्तज़ा अली ख़ान के परिजनों ने नवाब रज़ा अली ख़ान की पांच अचल संपत्तियों सहित खजाने और अन्य चल संपत्ति पर भी जबरन क़ब्ज़ा कर लेना का आरोप लगाया था।

कहा-कहा गया मामला
रामपुर रियासत के आखिरी शासक नवाब रज़ा अली ख़ान की संपत्ति को लेकर दो पक्ष हैं। एक तरफ नवाब रज़ा अली ख़ान के दो अन्य बेटे मरहूम ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ान व मरहूम आबिद अली ख़ान, छह बेटियां और उनके बच्चे हैं। और संपत्ति पर हक़ जताने वाले दूसरे है मरहूम नवाब रज़ा अली के बड़े बेटे मरहूम मुर्तज़ा अली ख़ान के बेटे मोहम्मद अली ख़ान और बेटी निगहत अली ख़ान हैं।

खानदान में संपत्ति को लेकर जब आपस में कलेश बाढ़ गया तो नवाब रज़ा अली ख़ान की नवासी तलत फ़ातिमा 1972 में पहली बार कोर्ट गयी। अदालत में अर्जी दाखिल कर नवाब साहब की पूरी संपत्ति को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरिया कानून के आधार पर सभी वारिसों में बांटने की गुहार लगाई थी।

पहले निचली अदालत के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट की पहल पर अब निचली अदालत ने शरई कानून के तहत यह योजना तैयार की है.

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