महाकाल यानी काल के देवता। अब महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति महाकाल की इस पहचान को नए सिरे से श्रद्धालुओं तक पहुंचाने के लिए यहां से पंचांग और कैलेंडर प्रकाशित करने के साथ श्रद्धालुओं को घड़ी भी उपलब्ध करा सकती है। इस संबंध में एक प्रस्ताव समिति के पास विचाराधीन है। चैत्र से शुरू होने वाले नए हिंदू नववर्ष विक्रम संवत से पंचांग और कैलेंडर की शुरुआत हो जाएगी।
उज्जैन को प्राचीन काल गणना का केंद्र माना जाता है। इसलिए यहां ऐसे पौराणिक और ऐतिहासिक स्थान मौजूद हैं, जिनका सीधा संबंध समय और समय की गणना से है। कालगणना से ज्योतिष विद्या का उद् भव हुआ है। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव मानते हैं कि उज्जैन को फिर से विश्व की कालगणना का केंद्र बनाना है तो इस पहचान को फिर से स्थापित करना होगा। इसका पहला कदम महाकाल मंदिर समिति की ओर से ही उठना चाहिए। इसलिए समिति को प्रस्ताव दिया है कि यहां श्रद्धालुओं को समय की प्रतीक घड़ी, पंचांग व कैलेंडर उपलब्ध होना चाहिए।
सप्त सागर, बावन कुंड, चौरासी महादेव
उज्जैन में चौरासी लाख योनियों के प्रतीक 84 महादेव हैं तो सात सागरों के प्रतीक सप्त सागर भी। साल के 52 सप्ताह के प्रतीक बावन कुंड सूर्य मंदिर के आंगन में विद्यमान हैं। यहां कर्क रेखा गुजरती हैं। इसके प्रतीक कर्कराज शिप्रा तट पर समाधिस्थ हैं। पृथ्वी पुत्र मंगल का यहां निवास है तो नवग्रहों के साथ शनि ने भी त्रिवेणी के संगम पर आसन लगा रखा है। यहां आयु देने वाले मार्कंडेय मौजूद हैं तो अखंड धूनी का जागृत श्मशान चक्रतीर्थ भी।
श्रीकृष्ण ने भी यहां ऋषि सांदीपनि के आश्रम में खगोलीय व ज्योतिष की शिक्षा भी ली थी। कालांतर में यहां राजा जयसिंह ने वेधशाला बनाई। आधुनिक यंत्रों से सुसज्जित नई वेधशाला डोंगला में बनाई गई है। सम्राट विक्रमादित्य ने शक्तियों को साध कर नवसंवत की शुरुआत की थी, जो विक्रम संवत के नाम से प्रचलित है। विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने भी ज्योतिष विद्या को आगे बढ़ाया।
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