माता-पिता के आपसी विवाद के बाद बच्चों की कस्टडी को लेकर अक्सर विवाद होता है। इसमें 7 साल से छोटे बच्चे कानूनी तौर पर मां को मिलते हैं। बच्चे की परवरिश मां से बेहतर और कोई नहीं कर सकता, लेकिन दो ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें कोर्ट को भी मानना पड़ा कि मां से ज्यादा संवेदनशील पिता है। हालांकि अपनी संवेदनशीलता, बच्चे की परवरिश बेहतर करने का प्रमाण जुटाने के लिए पिता को काफी परेशानी उठानी पड़ी। इसके बाद पुरुषों के हितों के लिए काम करने वाली दो संस्थाओं ने ऐसे पिताओं को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई, जिसके बाद उन्हें बच्चों की कस्टडी मिल गई। ऐसे ही दो पिताओं ने साझा किए अपने अनुभव।
आपबीती... बच्ची को पीटती थी पत्नी, यह देख बहुत दुख होता था, इसलिए जुटाए साक्ष्य
बच्ची को पत्नी की क्रूरता से बचाया
मेरी शादी 2018 में हुई थी। पत्नी मैरिज ब्यूरो चलाती थी। पता चला कि वो लड़के वालों से बड़ी रकम लेकर शादी कराती है। इस पर झगड़ा होने लगा। बेटी के जन्म के एक माह बाद हम लोग अलग हो गए। पत्नी बच्ची को पीटती थी। इसकी शिकायत पुरुष हेल्पलाइन पर की। साक्ष्य जुटाए और सेंधवा एसडीएम के सामने साबित किया कि मैं मां से बेहतर बच्ची की देखभाल कर सकता हूं और मां से ज्यादा संवेदनशील हूं। इस आधार पर बच्ची की कस्टडी मिल गई। (जैसा कि 7 माह की बेटी के पिता ने बताया)
बेटी बोली- मुझे पिता के साथ रहना है
मेरी शादी 2013 में हुई थी। 2 साल बाद बेटी हुई। तब पता चला कि पत्नी का विवाहयेत्तर संबंध है। पत्नी काे बहुत समझाया, लेकिन नहीं मानी। उसने कई केस लगा दिए और बच्ची को लेकर मायके चली गई। फैमिली कोर्ट में समझौता हुआ। फिर मैंने बच्ची के साथ मायके में हो रही क्रूरता के साक्ष्य जुटाए और फैमिली कोर्ट में पेश किए। काउंसलर ने बेटी से पूछा- किसके साथ रहना है तो उसने कहा कि पिता के साथ। इस पर कोर्ट ने बेटी की कस्टडी मुझे दे दी। (जैसा कि 5 साल की बेटी के पिता ने बताया)
कोर्ट में केस- पहली संस्था के डायरेक्टर ने बताया कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में बच्चों की कस्टडी के 8662 केस कोर्ट में लंबित हैं। दूसरी संस्था के मेंबर ने कहा कि भोपाल में करीब 150 पिता ऐसे हैं जो संस्था से जुड़े हैं और बच्चों की कस्टडी के लिए प्रयासरत हैं।
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