शहर के सबसे पुराने बुधवारिया हाट बाजार को नए रंग-रूप में ढालने के दावे तो खूब किए गए लेकिन जमीनी तौर पर काम की गति दिखाई नहीं दी। साप्ताहिक की तरह यहां रोज दुकानें लगाने की सुविधा दिलाने की बात भी कही थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
लोगों को जरूरी सामान, सब्जी, दाल-मसाले आदि खरीदने के लिए एक ही जगह पर सुविधा मिलने के लिए नगर निगम ने यह योजना बनाई थी। इसे 6 महीने में पूरा करनेे का दावा किया था लेकिन 45 माह बाद भी ओटलों के बीच पहुंच मार्ग का काम पूरा नहीं हो पाया है।
केंद्र की योजना के तहत राज्य सरकार ने इसके लिए 3.67 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। नगर निगम परिषद की मंजूरी के बाद तत्कालीन नगरीय विकास एवं आवास मंत्री मायासिंह ने दिसंबर 2016 में भूमिपूजन किया था। तब दावा किया था कि 6 महीने में इसका काम पूरा कर दिया जाएगा। निगम आयुक्त क्षितिज सिंघल ने बताया यह शासन से स्वीकृत योजना है। इसके लिए अभी किस्त नहीं मिली है। इसके अलावा संबंधित निर्माण कंपनी को भी निर्देश दिए हैं कि फिनिशिंग और लाइटिंग के जो काम बाकी हैं, उन्हें जल्द ही पूरा करवाएं।
हाट बाजार बने तो व्यापारियों को रोज देना होगा शुल्क
नगर निगम ओटलों और जगह को नीलाम नहीं करेगा न ही किराए पर देगा। कोई भी व्यापारी यहां स्थायी रूप से दुकान या ठेला नहीं लगा पाएगा। उनसे निगम रोजाना अन्य जगह लगने वाले ठेले-गुमटियों से वसूले जाने वाले शुल्क की तरह ही राशि लेगा। निर्माण के बाद जगह के आकार-प्रकार के आधार पर शुल्क तय किया जाएगा।
ओटले तो बनाए पर चढ़ने के लिए केवल एक रैलिंग लगाई, गाेबर इकट्ठा कर रहे
फाजलपुरा क्षेत्र में नगर कोट माता मंदिर के पास स्थित बुधवारिया हाट और आसपास की जमीन पर 26500 वर्ग मीटर क्षेत्र में आधुनिक सुविधाओं वाला हाट-बाजार बनाया जाना था। इसके बाद पुराने शहर के इस हिस्से में ठेला और सड़क पर सामान रख कर व्यवसाय करने वाले 200 व्यवसायियों को व्यापार करने की जगह दी जानी थी।
व्यवसायी अब भी कारोबार कर रह हैं लेकिन सड़क पर। 13 साल से हाट में लकड़ी और अन्य सामान बेच रहे आजाद खान बताते हैं शुरुआत में अच्छा लगा कि 6 महीने बाद ही सही पक्के ओटले तो मिल जाएंगे लेकिन अब भी काम चल रहा है। सब्जी बेचने वाली जानकीबाई ने कहा-फाजलपुरा के मुख्य मार्ग से हाट में एक नाला है।
गर्मी में उसी पर बैठ दुकान लगाते हैं लेकिन बारिश में गंदा पानी नाले से बाहर आ जाता है। इससे सड़क पर बैठना पड़ता है। सीमेंट कांक्रीट के ओटले भी इतने ऊंचे बनाए हैं कि उस पर चढ़ने के लिए रैलिंग की जरूरत होगी। फिलहाल सामने की ओर केवल एक रैलिंग लगाई जा सकी है। ऐसे में उपभोक्ताओं को ओटलो पर चढ़ने के लिए घूमकर जाना पड़ रहा है।
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