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राजबाड़ा, बड़ा गणपति के पास से अंडरग्राउंड गुजरेगी मेट्रो, 21 माह बीते, सर्वे ही नहीं किया, अब तक सिर्फ 5.27 किलोमीटर का टेंडर दिया

(दीपेश शर्मा) इंदौर मेट्रो का ट्रैक 31.55 किमी का है। इसमें सिर्फ 5.27 किमी के उस ट्रैक के टेंडर हुए हैं, जहां काम करना सबसे सरल था। इसके बाद की जद्दोजहद बेहद चुनौतीपूर्ण होगी, क्योंकि फिर मेट्रो शहरी क्षेत्र और इंदौर के सबसे घनत्व वाले इलाकों से निकलेगी। इसमें जिला कोर्ट से एयरपोर्ट तक 6 किमी का ट्रैक अंडरग्राउंड है।

इसी ट्रैक के पास राजबाड़ा, खजूरी बाजार सहित इंदौर के पुराने मार्केट हैं। अंडरग्राउंड ट्रैक की खुदाई टनल बोरिंग मशीन से की जाती है। इस मशीन के कंपन को रोकने के लिए कुशन लगाने पड़ते हैं। ऐसा तब हो पाता है, जब जियो टेक्निकल सर्वे से पता चल सके कि इमारतों की नींव कितनी गहरी है।

इस जियो टेक्निकल सर्वे की शुरुआत जनवरी 2019 में हुई, लेकिन बाद में काम बंद हो गया। अब इस सर्वे को ही करवाने में पांच से छह महीने लगेंगे। मेट्रो के पहले एमडी रहे आईएएस प्रमोद अग्रवाल ने जनवरी 2019 में जियो टेक्निकल सर्वे का टेंडर कराया था। काम शुरू होने के पहले ही तकनीकी गड़बड़ी के कारण नए सिरे से टेंडर की प्रक्रिया शुरू की गई। बाद में यह काम शुरू ही नहीं हो सका।

ऐतिहासिक इमारतों के नीचे से डिजाइन था रूट, फिर बदला
कंसल्टेंट ने रूट की डिजाइन ही फाइनल नहीं की। इस प्रोजेक्ट से शुरुआती दौर में जुड़े अधिकारियों ने बताया, कंपनी ने बड़ी-बड़ी गलतियां की, जैसे मेट्रो को बोलिया सरकार की छत्री के नीचे से ही निकालने की डिजाइन बना ली थी। इससे न सिर्फ ऐतिहासिक इमारत को खतरा होता बल्कि राजबाड़ा भी जद में आ जाता। देवलालीकर कला वीथिका और मराठी स्कूल को तोड़कर स्मार्ट सिटी द्वारा कॉम्प्लेक्स तैयार किया जा रहा है। इसके नीचे से भी तो मेट्रो को ले जाया जा सकता था, पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

टनल बोरिंग मशीन का कंपन रोकने 6.5 मीटर का कुशन लगाना जरूरी है
अंडरग्राउंड ट्रैक बनाने के लिए टनल बोरिंग मशीन को जमीन में उतारा जाएगा। इसके लिए 150 मीटर चौड़ा गड्ढा लगता है। इसे कोठारी मार्केट के पास से उतारने की प्लानिंग है। इतनी ही चौड़ाई का गड्ढा वहां होगा, जहां से मशीन को निकाला जाएगा। इस मशीन को चलाने पर कंपन होता है।

इसे रोकने के लिए मशीन के ऊपर 6.5 मीटर का कुशन लगाना होता है। नींव व टनल बोरिंग मशीन के बीच में कुशन नहीं रहा तो इमारत कंपन से ही गिर सकती है। इसका पता जियो टेक्निकल सर्वे से चलता है। इस सर्वे को गहराई से करने में कम से कम 5 महीने का समय लगता ही है।

मेट्रो एएमडी अब भी बोल रहीं, कुछ ही सर्वे बाकी है
मेट्रो की एएमडी निगमायुक्त प्रतिभा पाल ने बताया मीटिंग में जियो टेक्निकल सर्वे को लेकर भी बात हुई है। ऐसा बताया जा रहा है कि कुछ पॉइंट्स पर सर्वे हो गया है और कुछ बाकी है। इसे भी जल्द पूरा कराएंगे। एक बार काम शुरू हो जाए फिर पूरी गति से काम कराने के प्रयास किए जाएंगे।



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अभी कछुआ चाल से चल रहा प्रोजेक्ट।


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