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छह महीने बाद भी दूर नहीं हुआ कोरोना का डर, 10 प्रतिशत विद्यार्थी भी नहीं पहुंचे स्कूल

लॉकडाउन के बाद सोमवार से केवल कक्षा 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए आंशिक रूप से स्कूल खोल दिए गए। हालांकि छह महीने बाद स्कूल खुलने के बाद भी विद्यार्थियों और पालकों के मन से कोरोना का डर नहीं गया। इसलिए पहले दिन स्कूलों में पहुंचने वाले विद्यार्थियों की संख्या कुल विद्यार्थियों की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत ही रही। कहीं नियमों का पालन हुआ तो कहीं नियमों का पालन करवाने के नाम ऐसे मातहतों की ड्यूटी लगा दी गई, जिन्हें न तो थर्मल स्कैनिंग की पूरी जानकारी थी और न ही कोरोना नियमों की। वहीं कुछ प्राइवेट स्कूलों में नियमों का पालन करवाने के नाम पर प्रबंधन की मनमानी हावी रही। नीलगंगा के समीप स्थित स्कूल में सोशल डिस्टेंस के पालन किए बगैर एक ही कक्षा में लगभग 40 विद्यार्थियों को बैठाकर पूरी क्लास लगाई गई।

कन्या उमावि दशहरा मैदान में नहीं थी तापमान की जानकारी
स्कूल में सोमवार को 11वीं और 12वीं की छात्राओं को ही बुलाया था। गेट पर स्कूल की दुर्गा और पुष्पाबाई थर्मल स्कैनिंग और सैनिटाइज कर रही थीं। महिलाकर्मी से पूछा कितना तापमान होने पर वे अनुमति दे रही हैं? उन्होंने मशीन में 92 तक का तापमान होने पर अंदर जाने देने की बात कही।

विजयाराजे स्कूल में केवल सहमति पत्रों का वितरण
घासमंडी चौराहे के समीप स्थित स्कूल में पहले दिन शिक्षक तो पहुंचे लेकिन किसी भी छात्रा को स्कूल में आने की अनुमति नहीं दी गई। क्योंकि उनके पास सहमति पत्र नहीं थे। स्कूल प्रबंधन ने बताया पहले दिन केवल सहमति पत्रों का वितरण किया है। सहमति पत्र जमा करवाए जा रहे हैं।


श्री जालसेवा निकेतन में पहुंचे केवल चार विद्यार्थी
प्राचार्य सुधीर सोमानी ने बताया स्कूल में पहले दिन केवल चार छात्र स्कूल आए थे लेकिन उनके पास पालकों की लिखित सहमति नहीं थी। इसलिए उन्हें वापस भेजा गया। स्कूल में एक कक्ष छह महीने बाद खोला गया तो लोहे की टेबलें पूरी तरह जंग खा चुकी थी।


उत्कृष्ट विद्यालय में सहमति पत्रों की जांच के बाद प्रवेश
पहले दिन 100 विद्यार्थी ही स्कूल पहुंचे। गेट पर ही थर्मल स्कैनिंग की व्यवस्था की गई थी। सुरक्षाकर्मी द्वारा ही विद्यार्थियों के सहमति पत्र जांचने के बाद अंदर जाने की अनुमति थी। स्कूल में सुबह के सत्र में पूरक परीक्षा होने से दोपहर 1.30 बजे से विद्यार्थियों को बुलाया गया था।



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Even after six months, the fear of corona did not go away, 10 percent of the students did not even reach the school


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