STOCK MARKET UPDATE

Ticker

6/recent/ticker-posts

लॉकडाउन न हुआ होता तो अब तक या तो काशी विश्वनाथ मुक्त हो गया होता या हम जेल में बंद होते... (ksm News}

https://ift.tt/3j0FPyI

काशी के साकेत नगर में सुधीर सिंह का घर दूर से ही पहचान में आ जाता है। घर के बाहर खड़ी दो स्कार्पिओ कार और बंदूकों के साथ गश्त करते तीन सुरक्षा गार्ड इस घर को बाकियों से अलग कर रहे हैं। सुधीर सिंह वही व्यक्ति हैं जो काशी में सबसे मजबूती से यह दावा कर रहे हैं कि अयोध्या के बाद अब ‘काशी-मथुरा बाकी है’ के नारे को हकीकत में बदलने का समय आ गया है। वे कहते हैं, ‘अगर लॉकडाउन न हुआ होता तो अब तक या तो काशी विश्वनाथ मुक्त हो गया होता या फिर हम राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद होते।’

उनके इस बयान का पहला हिस्सा भले ही काल्पनिक हो, लेकिन दूसरा हिस्सा काफी हद तक सही है। बीते कुछ समय में सुधीर सिंह की कई गतिविधियां ऐसी रही हैं जिनके चलते उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता था। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के कुछ ही समय बाद सुधीर सिंह ने बनारस में ‘काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ की शुरुआत कर दी।

सुधीर सिंह की पहचान पूर्व सपा नेता के रूप में होती है। फिलहाल वे शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव हैं।

फरवरी में महाशिवरात्रि के दिन काशी के मशहूर अस्सी घाट पर इसकी औपचारिक घोषणा की गई। सुधीर सिंह दावा करते हैं कि लगभग दस हजार लोग इस मौके पर उनके साथ मौजूद थे जिन्होंने ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष के साथ उस दिन संकल्प लिया कि काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद को अब हटाकर ही मानेंगे।

बीते आठ महीनों में सुधीर सिंह दो बार जेल भी जा चुके हैं। उनकी पहली गिरफ्तारी तब हुई थी जब उन्होंने काशी के संकटमोचन मंदिर से ज्ञानवापी तक ‘दण्डवत यात्रा’ निकालने का ऐलान किया। यह यात्रा कई मुस्लिम बहुल इलाकों से होकर निकलनी थी लिहाजा माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने यात्रा से एक दिन पहले ही सुधीर सिंह को गिरफ्तार कर बनारस जिला जेल भेज दिया।

तीन दिन जेल में रहने और दस लाख के जमानती पेश करने के बाद सुधीर सिंह को जमानत मिल गई। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपने समर्थकों के साथ मिलकर एक और विवादास्पद आयोजन किया। इस बार वे ‘काशी कोतवाल’ कहलाने वाले बाबा भैरव नाथ के मंदिर पहुंचे और यहां उन्होंने काशी विश्वनाथ की ‘मुक्ति’ के लिए एक ‘मुक्ति पत्रक’ मंदिर में दिया। इस बार मंदिर से ही सुधीर सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया जहां वे चार दिन रहे और दोबारा दस लाख के जमानती पेश करने के बाद रिहा हुए। ये घटना देश भर में लागू हुए लॉकडाउन से ठीक पहले की है।

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के कुछ ही समय बाद सुधीर सिंह ने बनारस में ‘काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ की शुरुआत कर दी।

लॉकडाउन शुरू हुआ तो सुधीर सिंह की गतिविधियों पर भी रोक लग गई। लेकिन इस दौरान वे सोशल मीडिया के माध्यम के इस मुद्दे को लगातार बेहद आक्रामक तरीके से उठाते रहे हैं। वे बताते हैं कि ‘काशी-मथुरा बाकी है’ के नारे पर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भले ही खुले तौर से अभी कुछ नहीं कह रहे लेकिन सोशल मीडिया पर भाजपा के आईटी सेल से उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा है।

सुधीर सिंह ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं जो काशी विश्वनाथ की कथित मुक्ति के लिए बनारस में इन दिनों मुखर हैं। अखिल भारतीय संत समिति, अखाड़ा परिषद और खुद काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कुछ पुजारी भी अब इस मुद्दे पर बोलने लगे हैं। विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा ने तो हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करते हुए लिखा है, ‘समुदाय विशेष को वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित कब्जे वाले उस धर्मस्थल को हृदय पक्ष के स्वच्छ भाव व स्वस्थ मानसिकता से छोड़ देना चाहिए जो एक आक्रांता के द्वारा बर्बरता से बाबा विश्वनाथ के मन्दिर को तोड़कर बनाया गया।’

काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा कहते हैं कि काशी को उसके असली स्वरूप में वापस आना चाहिए। इसके लिए मस्जिद का हटना जरूरी है।

‘काशी-मथुरा बाक़ी है’ के नारे का आगे बढ़ाता हुआ यह घटनाक्रम काशी में ऊपरी तौर से नजर आता है। लेकिन इस घटनाक्रम का काशी की आम जनता पर क्या और कितना असर है? इस सवाल का जवाब देते हुए यहां ट्रैवल का काम करने वाले युवा राजू पाल कहते हैं, ‘जनता के बीच ऐसे नारों और ऐसी घटनाओं का कोई असर नहीं है। सुधीर सिंह इस मुद्दे के चलते अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं और बाकी लोग भी सुर्खियों में आने के लिए इसे उठा रहे हैं। ये सभी ऐसे लोग हैं जिनकी जनता के बीच कोई पकड़ नहीं है।'

सुधीर सिंह पर इस मुद्दे के चलते अपनी राजनीति साधने के जो आरोप लग रहे हैं, उसके पीछे कई मज़बूत कारण हैं। सुधीर कई साल तक समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे हैं, वे पार्टी के प्रदेश सचिव रह चुके हैं और काशी से मेयर का चुनाव भी लड़ चुके हैं। अब वे इस संभावना को भी स्वीकारते हैं कि भविष्य में वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं और मऊ के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के खिलाफ भाजपा से उन्हें टिकट मिल सकता है। वे बताते हैं कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से उनकी बातचीत भी चल रही है।

काशी के दुनिया के सबसे पुराने नगरों में गिना जाता है। यहां गंगा नदी में लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं।

यही कारण हैं कि सुधीर सिंह जब ‘काशी विश्वनाथ मुक्ति आंदोलन’ जैसी कोई मुहीम चलाते हैं तो वे सुर्खियों में तो आते हैं लेकिन काशी के आम जनमानस पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता। मुफ्ती-ए-बनारस और ज्ञानवापी मस्जिद के इमाम अब्दुल बातिन नोमानी कहते हैं, ‘इस तरह की मुहिम और काशी-मथुरा बाकी है जैसे नारों की बनारस में कोई अहमियत नहीं है। यहां कुछ घटनाक्रम ऐसे जरूर हुए थे जिनके चलते मुस्लिम समुदाय में ज्ञानवापी को लेकर आशंकाएं पैदा हुई थी लेकिन अभी फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। बनारस और अयोध्या में बहुत फर्क है, यहां अयोध्या जैसी घटना का दोहराव मुमकिन नहीं है।’

काशी में अयोध्या जैसी घटना की संभावना को नकारते हुए बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एके लारी कहते हैं, ‘यहां का सामाजिक ताना-बाना बेहद मज़बूत है। मशहूर बनारसी साड़ी का ही उदाहरण लीजिए। इसे बनाने वाले अधिकतर बुनकर मुसलमान हैं जबकि अधिकतर गद्दीदार हिंदू। सब एक-दूसरे पर निर्भर है। ज्ञानवापी में भी एक तरफ हिंदू आबादी है तो वहीं बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी भी बसती है। लिहाजा यहां वैसा कुछ नहीं हो सकता जैसा अयोध्या में हो गया। कुछ लोग यहां आपसी सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी संख्या भी बहुत कम है और उनका कोई असर भी नहीं है।’

ज्ञानवापी मस्जिद के इमाम अब्दुल बातिन नोमानी कहते हैं कि इस तरह की मुहिम और काशी-मथुरा बाकी है जैसे नारों की बनारस में कोई अहमियत नहीं है।

काशी में बन रहे चर्चित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की जब शुरुआत हुई थी, तब जरूर स्थानीय लोगों में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आशंकाएं पैदा होने लगी थीं। इन आशंकाओं को अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कुछ और बल दिया और ‘काशी-मथुरा बाकी है’ का नारा जोर पकड़ने लगा था। हालांकि आज स्थिति उससे काफी अलग है और काशी के आम जनमानस में इस नारे का कोई सीधा असर नजर नहीं आता। लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं है कि ये नारा अब अप्रासंगिक हो गया है या इसे उछालने वालों को पूरी तरह नजरंदाज किया जा सकता है।

ऊपरी तौर से देखने पर काशी में फिलहाल इस नारे की जनता के बीच भले ही कोई पकड़ नहीं दिखती लेकिन सतह के नीचे आज भी वे संगठन बेहद मजबूत और सक्रिय हैं जिन्होंने 80-90 के दशक में ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’ के नारे को जन्म दिया था। इस सक्रियता को काशी में हुई एक हालिया घटना में आसानी से देखा जा सकता है।

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन नामक संस्था बनाकर ज्ञानवापी से काशी विश्वनाथ को मुक्त कराने की बात करने वाले सुधीर सिंह को फरवरी में पुलिस ने गिरफ्तार किया था।

हुआ यूं कि अयोध्या में जब प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया तो उसके बाद एक बात तेजी से फैलने लगी कि वहां मौजूद एक पुजारी ने दक्षिणा स्वरूप प्रधानमंत्री मोदी से काशी और मथुरा की मुक्ति की मांग की है। कई समाचार पत्रों ने इस बारे में खबर भी प्रकाशित की। इसके कुछ ही दिनों बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी काशी दौरे पर आए।

इनमें भैयाजी जोशी और दत्तात्रेय होसबोले भी शामिल थे। काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक श्रीकांत मिश्रा बताते हैं, ‘उनसे मुलाकात के दौरान जब इस बात का जिक्र छिड़ा तो दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि ये सिर्फ एक अफवाह थी। असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ था। लेकिन जब सोशल मीडिया पर ये चलने लगी तो हमने भी इसका खंडन नहीं किया, इसे चलने ही दिया।’

धर्मग्रन्थों और पुराणों में काशी को मोक्ष की नगरी कहा गया है। कहा जाता है कि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है।

श्रीकांत मिश्रा कहते हैं, ‘मैं तो खुलकर कहता हूं कि काशी को उसके असली स्वरूप में वापस आना चाहिए और इसके लिए ज्ञानवापी मस्जिद का हटना जरूरी है। मैंने आरएसएस और भाजपा के कई लोगों से भी इस बारे में बात की लेकिन वो लोग शायद अभी इस मामले को पकाना चाहते हैं। अभी ये मामला सुलझ जाएगा तो उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा जो इस पर राजनीति करना चाहते हैं। लेकिन अगर ये अभी नहीं सुलझा तो इसके परिणाम घातक होंगे। एक दिन लोग इतने आक्रोशित हो जाएंगे कि मुक्का मार-मार ही इस ढांचे को गिरा देंगे।’

लगभग ऐसी ही बात शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी बताते हैं। वे कहते हैं, ‘भाजपा की आज पूर्ण बहुमत की सरकार है। ऐसे में उनके लिए काशी का मुद्दा सुलझाना बेहद आसान है क्योंकि इसका इतिहास तो अयोध्या की तरह भी नहीं है। यहां तो स्पष्ट है कि मंदिर तोड़कर वो मस्जिद बनाई गई है और मौके पर साफ दिखता है कि मस्जिद कैसे मंदिर के ऊपर ही आज भी खड़ी है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मानना है कि सरकार चाहे तो यह मसला सुलझा सकती है। यहां अयोध्या जैसी स्थिति नहीं है, यहां तो साफ दिखता है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है।

सरकार को सिर्फ इतना ही करना है कि 1991 के ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम’ में बदलाव करे, जो कि उनके लिए बेहद आसान है। लेकिन ये लोग जानबूझकर ऐसा नहीं करते। ये राजनीतिक कारणों से मामले को उलझाए रखना चाहते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से इसका गवाह हूं कि अयोध्या का मामला बहुत पहले सुलझ सकता था लेकिन विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और भाजपा ने कभी नहीं चाहा कि ये सुलझ जाए।’

वे आगे कहते हैं, ‘भाजपा अगर आज भी कानून में बदलाव करके काशी का मामला सुलझाने का प्रयास करती है तो हम हमेशा उसके साथ खड़े हैं। लेकिन हमें उम्मीद नहीं है कि वो ऐसा करेंगे। वो इस मामले को भी सालों तक लटकाए रखेंगे ताकि ध्रुवीकरण हो और उनकी राजनीति चलती रहे।’

काशी विश्वनाथ मंदिर के मामले में बीते कई सालों से एक कानूनी लड़ाई भी जारी है जो बनारस की ही अदालत में लड़ी जा रही है। इस मुद्दे पर होने वाली तमाम राजनीति और कयासों से इतर शहर का एक बड़ा तबका ऐसा है जो इस न्यायिक लड़ाई के नतीजे का इंतजार कर रहा है।

अदालत में ये मामला कब से है, किस स्तर तक पहुंचा है, दोनों पक्षों की स्थिति इस कानूनी लड़ाई में कैसी है और इसका भविष्य क्या हो सकता है, इन तमाम मुद्दों की जानकारी ‘काशी मथुरा बाक़ी है’ की अगली कड़ी में।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Had the lockdown not happened, either Kashi Vishwanath would have been free by now or we would have been in jail…


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3la8Hqf
via IFTTT

Post a Comment

0 Comments

Custom Real-Time Chart Widget

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

market stocks NSC