हर तस्वीर अपने आप में एक इतिहास गढ़ती है। दुनिया की सबसे पहली फोटो का भी अपना 194 साल पुराना इतिहास है। डामर या एसफाल्ट की काली प्लेट पर ली गई इस पहली तस्वीर का किस्सा भी दिलचस्प है। वर्ल्ड फोटोग्राफी डे पर इसी किस्से के बहाने एक नजर डालते हैं तस्वीरों की दुनिया पर और जानते हैं किन लोगों ने हमें फोटो खींचना सिखाया।
क्यों मनाया जाता है यह दिन
साल 1826 में दुनिया की पहली दिखने वाली तस्वीर खींचने का श्रेय जाता है फ्रांस के जुझारू इनवेंटर जोसेफ नाइसफोर और उनके मित्र लुइस डॉगेर को, जिन्होंने अपनी आधी उम्र सिर्फ इसी काम के लिए समर्पित कर दी। इन दोनों की फोटो खींचने की इसी उपलब्धि को दुनिया 'डॉगेरोटाइप' प्रोसेस कहती है और इसे सम्मान देने के लिए वर्ल्ड फोटोग्राफी डे मनाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ।
9 जनवरी, 1839 को फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने इस प्रक्रिया की घोषणा की और कुछ महीने बाद, 19 अगस्त, 1839 को फ्रांस सरकार ने इस प्रकिया को बिना किसी कॉपीराइट के दुनिया को उपहार के रूप में देने की घोषणा की। तभी से 19 अगस्त को यह दिन मनाया जाता है।
2020 में इस घटना को 194 साल पूरे हो रहे हैं, इसी मौके पर हम आपके लिए लाए हैं पहली तस्वीर के बनने का किस्सा और फोटोग्राफी को समर्पित महान किरदारों की कहानी -
पूर्वी फ्रांस का कस्बा, वसंत का मौसम और साल 1826
- 1765 में जन्में जोसेफ नाइसफोर पूर्वी फ्रांस के सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में रहते थे। एक धनी वकील के बेटे और नेपोलियन की सेना के अफसर रह चुके नाइसफोर एक वक्त में कॉलेज में साइंस के प्रोफेसर भी रह चुके थे। कला में उनकी रुचि थी और वे उसमें विज्ञान की मदद से फोटोग्राफी मशीन बनाने में जुटे थे।
- फोटो म्यूजियम में दर्ज जानकारी के मुताबिक, वह 1926 की वसंत के दिन थे जब जोसफ ने पहली तस्वीर खींची थी। अमूमन फोटो खींचते समय क्या कैप्चर करना है, हमें मालूम होता है लेकिन, 1826 में ली गई पहली तस्वीर के साथ ऐसा नहीं था।
- सैंट-लूप-डे-वैरेनीज कस्बे में अपने दो मंजिला घर की पहली मंजिल की खिड़की के पास खड़े होकर जोसेफ ने अचानक ही एक तस्वीर कैप्चर कर ली और इसमें खिड़की के बाहर का एक दृश्य कैप्चर हो गया। बस, यही पल इतिहास में दर्ज हो गया और इसे ही दुनिया की पहली तस्वीर “View from the Window at Le Gras” नाम दिया गया।
पहली तस्वीर लेने में 6 साल की तैयारी लगी थी
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पहली तस्वीर को हकीकत में बनाने में जोसेफ नाइसफोर और उनके मित्र लुइस डॉगेर सन् 1820 से मेहनत कर रहे थे। दोनों ने पहले टिन और कॉपर जैसी मेटल पर फोटो उतारने की कोशिश की। असफल रहने के बाद बिटुमिन-एसफाल्ट यानी डामर का इस्तेमाल किया।
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दोनों अपने ही घर में अलग-अलग केमिकल्स को प्लेट पर फैलाकर सूरज की किरणों की मदद से फोटो लेने की तकनीक डेवलप करने में लगे थे। दरअसल, 18वीं सदी में कैमरा तो बन गया था लेकिन असली समस्या फोटो प्लेट की थी जिस पर फोटो को डेवलप किया जा सके।
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इसका समाधान निकालने के लिए 1820 में दोनों ने मिलकर डॉगेरोटाइप प्रक्रिया ईजाद की। डॉगेरोटाइप शब्द लुईस डॉगेर की सरनेम से बनाया गया है। इसके बाद भी पहली तस्वीर लेने में 6 साल का समय लगा और 1826 में इसकी मदद से पहली तस्वीर कैप्चर की गई।
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इस तस्वीर को कैप्चर करने में ऑब्सक्यूरा नाम के बड़े से कैमरे की मदद ली गई और पूरी प्रक्रिया में करीब 8 घंटे लगे थे। आगे चलकर इस पूरी प्रक्रिया को 'हीलियोग्राफी' नाम दिया गया ।
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डॉगेरोटाइप दुनिया की पहली फोटोग्राफिक प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल 1839 से आम लोगों ने तस्वीरों के लिए किया। इसमें काफी बड़े कैमरों का इस्तेमाल किया जाता था। इसकी मदद से कुछ मिनटों में ही साफ तस्वीर खींची जा सकती थी, लेकिन यह सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट थी।
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करीब 13 साल बाद फ्रांस सरकार ने उनके इस काम को मान्यता दी और 19 अगस्त 1839 को इस अविष्कार की आधिकारिक घोषणा की गई। अफसोस की बात यह थी कि इसके 6 साल पहले ही जोसेफ दुनिया को अलविदा कह गए थे।
ऐसे ली गईं दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर
- ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर सामने आने के बाद रंगीन फोटो लेने की जद्दोजहद शुरू हुई। इसे तैयार करने में बाजी मारी स्कॉटलैंड के भौतिकशास्त्री जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड से परिचय कराने वाले महान विज्ञानी मैक्सवेल 1955 से ही रंगीन तस्वीर को तैयार करने की थ्री-कलर एनालिसिस प्रक्रिया पर काम कर रहे थे।
- मैक्सवेल को इस बात का अंदाजा था कि इंसानी आंख में रंगों की पहचान के लिए विशेष कोशिकाएं कोन्स होती हैं और इस पहचान में रोशनी की बड़ा महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी के आधार पर उन्होंने अपने प्रयोग किए।
- इस काम में सिंगल लेंस रिफ्लेक्स कैमरा के आविष्कारक थॉमस सुटन ने भी उनकी मदद की और अलग-अगल रंगों की फोटो प्लेट पर सेंसेटिविटी के हिसाब से फोटो उतारने की एक प्रक्रिया सेट की।
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मैक्सवेल ने 17 मई 1861 में दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर रॉयल सोसायटी में दुनिया के बड़े इनवेंटर के सामने पेश की। यह तस्वीर स्कॉटलैंड में मशहूर टार्टन रिबन की थी और इसमें लाल, नीला और पीला रंग नजर आ रहा था जिसे इन तीनों रंगों के फिल्टर की मदद से प्लेट पर उतारा गया था।
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फोटो लेने की यह प्रक्रिया ब्लैक एंड व्हाइट फोटो की हीलियोग्राफी प्रोसेस से प्रेरित थी। इसमें कलर फिल्टर की मदद से एक बार में एक रंग की तस्वीर ली जाती थी और फिर सभी रंगों की तस्वीरों को सुपरइंपोज करके एक पूरी तस्वीर बनाई जाती थी। ये बड़ी पेचीदा और लंबी प्रक्रिया थी, जो आगे चलकर लेंस और कैमरा रील के आविष्कार का कारण बनी।
फोटोग्राफी की दुनिया के 3 सबसे बड़े इनवेंटर्स
1. जोसेफ नाइसफोर
- जोसेफ के पिता बड़े वकील और भाई शोधकर्ता थे जो बाद में इंग्लैंड चले गए। कॉलेज में पढ़ाई और बाद में बतौर प्रोफेसर काम करने के दौरान उनके अंदर प्रयोग करने में रुचि जागी।
- फ्रेंच आर्मी में नेपोलियन के नेतृत्व में जोसेफ ने बतौर स्टाफ ऑफिसर इटली और सार्डिनिया के द्वीपों पर सेवाएं दीं। लेकिन, इस दौरान वे बीमार रहने लगे और उन्हें सेना से इस्तीफा देना पड़ा।
- 1795 में इस्तीफा देने के बाद अपने भाई क्लॉड के साथ विज्ञान में दोबारा प्रयोग करने शुरू किए और कई सालों तक फोटोग्राफी प्लेट डेवलपमेंट की प्रक्रिया पर काम किया।
- 5 जुलाई 1833 को स्ट्रोक के कारण इनकी मौत हुई। जहां पर इन्होंने पहली फोटो उतारने का प्रयोग किया था, वहीं से कुछ दूरी पर इन्हें दफनाया गया।
- मौत के बाद इनके बेटे इसिडोरे ने लुइस के साथ मिलकर काम किया और सरकार की ओर इनके पिता की याद में पेंशन मिलना शुरू हुई।
2. लुइस डॉगेर: इन्हीं के नाम पर है फोटोग्राफी की पहली प्रोसेस 'डॉगेरोटाइप '
- लुइस एक आर्किटेक्ट और थिएटर डिजाइनर होने के साथ दुनिया के पहले पैनोरमा पेंटर भी कहे जाते हैं।
- जोसेफ नाइसफोर के साथ इनकी दोस्ती 1819 में हुई, दोनों ने 14 साल मिलकर काम किया।
- लुइस की लगातार मेहनत का नतीजा था कि दोस्त जोसेफ की याद में सरकार ने पेंशन जारी की।
- लुइस ने अपने प्रयोग को आगे बढ़ाने प्राइवेट इंवेस्टर्स के साथ मिलकर फंडिंग की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे।
- लुइस ने फैसला किया कि अपनी उपलब्धि को लेकर वह जनता के बीच जाएंगे। अंतत: फ्रांसीसी सरकार ने इनकी उपलब्धि को सम्मान के तौर पर दर्ज किया गया।
जेम्स क्लर्क मैक्सवेल: पहला रंगीन फोटो इन्हीं की देन
- भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल का जन्म स्कॉटलैंड के एडनबर्ग में हुआ था। 1865 में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक थ्योरी मैक्सवेल ने ही दी थी।
- बेहद कम उम्र में मैक्सवेल को लम्बी-लम्बी कविताएं पढ़ने का शौक था। एक बार जिस कविता को पढ़ लेते थे, उन्हें याद हो जाती थी।
- इसी खूबी को देखकर इनकी मां ने मैक्सवेल की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना शुरू किया।
- मैक्सवेल को पढ़ाई के लिए एडनबर्ग एकेडमी भेजा। वहां पर मात्र 13 साल की उम्र में एक ही साल में उन्होंने गणित, अंग्रेजी और पोएट्री तीनों में मेडल हासिल किया।
- मात्र 14 साल की उम्र में जर्नल के लिए अपना साइंटिफिक पेपर लिखा, इसमें उन्होंने मैथमेटिकल कर्व के बारे में नई जानकारियां खोजीं।
अब मिलिए 'फादर ऑफ वाइल्डलाइफ फोटाेग्राफी' जॉर्ज शिरस III से
- अमेरिका के पेनसिल्वेनिया में जन्में जॉर्ज शिरस पेशे से वकील और नेता के साथ मशहूर शिकारी हुआ करते थे। इसी दौरान उन्हें जानवरों की तस्वीरें खींचने का शौक हुआ।
- जंगलों में घूमते-घूमते जॉर्ज पूरी तरह से वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में रम गए। आगे चलकर वह वन्यजीवों के रक्षक बन गए और पूरा जीवन जंगल और जानवरों को समर्पित कर दिया।
- जॉर्ज ने ही सबसे पहले 1889 के में कैमरा ट्रैप और फ्लैश फोटोग्राफी का इस्तेमाल वन्य जीवों के फोटो खींचने के लिये किया था।
- अमेरिका की मिशिगन झील और उसके आसपास उनके खींचे गए ब्लैंक एंड व्हाइट फोटो आज दुनिया की धरोहर है।
- नेशनल जियोग्राफिक ने जॉर्ज शिरस को “The Father of Wildlife Photography” नाम दिया है। उनका 2400 ग्लास नेगेटिव का पूरा कलेक्शन नेशनल जियोग्राफिक के पास सुरक्षित है।
- नेशनल जियोग्राफिक ने जॉर्ज के सम्मान में एक किताब “In the Heart of the Dark Night” प्रकाशित की है।
आखिर में, कहानी उस पहली सेल्फी की जिसके आज सभी दीवाने हैं
- दुनिया की पहली सेल्फी लेने का श्रेय अमेरिका के युवा व्यापारी और फोटोग्राफी के दीवाने रॉबर्ट कॉर्नेलियस को जाता है। रॉबर्ट के पिता का सिल्वर प्लेट बनाने का कारोबार था जिसका फोटो डेवलप करने में इस्तेमाल हुआ।
- जिस साल फ्रांस सरकार ने फोटोग्राफी की प्रक्रिया दुनिया को तोहफे में दी, उसी साल यह कारनामा हुआ। वह 1839 का एक दिन था, फिलाडेल्फिया शहर के सेंटर में स्थित चेस्टनट स्ट्रीट पर युवा रॉबर्ट कॉर्नेलियस एक कैमरे के लेंस के सामने खड़े थे।
- उस समय तस्वीर लेने में कई मिनट का वक्त लगता थो तो उन्होंने अचानक ही कैमरा सेट किया और लेंस की कैप निकाली और क्लिक बटन दबाकर उसके सामने दौड़कर फ्रेम में खड़े हो गए।
- बस, यही थी दुनिया की पहली सेल्फी जो दौड़कर ली गई थी और आगे चलकर इसे ‘फर्स्ट लाइट पिक्चर’ का सम्मान भी मिला।
- जॉर्ज के देखादेखी उस समय कई लोग ये प्रयोग करने लगे थे, हालांकि उस समय सेल्फी शब्द चलन में नहीं था। कहा जाता है कि सेल्फी शब्द सिर्फ 18 साल पुराना है और इसे पहली बार 2002 में ऑस्ट्रेलिया में एक लड़के ने सेल्फ पोट्रेट फोटो के लिए इस्तेमाल किया था।
फोटोग्राफी डे पर देखिए दुर्लभ और कमाल की तस्वीरें
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