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लॉकडाउन के कारण 1.1 करोड़ बच्चों को नहीं मिला मिड-डे मील, देश में कोरोना के बीच मासूमों के सामने पेट भरने का संकट (ksm News}

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कोरोना संकट के बीच देश में करोड़ों गरीब बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें स्कूल बंद होने और सरकारी लेटलतीफी के कारण मिड-डे मील मिलना मुश्किल हो गया है। भास्कर ने पड़ताल की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। देश के 12 राज्यों के करीब 1.1 करोड़ से ज्यादा बच्चों को बीते महीनों में समय पर मिड-डे मील नहीं मिल पाया है।

उत्तर प्रदेश में करीब 20% बच्चों को न तो मिड-डे मील का खाद्यान्न मिला है और न ही इसके लिए दी जाने वाली राशि। वहीं, बिहार के 8 जिले तो ऐसे हैं जहां पिछले सप्ताह तक 92% तक बच्चों को राशन नहीं दिया गया था। अधिकारियों को इसके लिए नोटिस भी दिया गया है। दूसरी तरफ खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा जारी मासिक फूड ग्रेन बुलेटिन में खाद्यान्न उठाने का डेटा देखा तो मिड-डे मील की हकीकत सामने आ गई।

इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के लिए खाद्यान्न (चावल, गेहूं, मोटा अनाज) का उठाव पिछले साल के मुकाबले 70% कम था। खाद्यान्न का उठाव मार्च-अप्रैल 2019 में 3,35,000 टन से घटकर 2020 में मात्र 1,09,000 टन रह गया था। आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से दिए जाने वाले मिड-डे खाद्यान्न भी लगभग 60% कम उठा।

आईसीडीएस या इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम के तहत आंगनवाड़ी केंद्रों द्वारा संचालित पोषण कार्यक्रम के लिए, खाद्यान्न का उठाव पिछले साल (मार्च और अप्रैल में) 2,38,000 टन से घटकर इस साल दो महीनों में केवल 97,000 टन हो गया था। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब पूरा खाद्यान्न ही नहीं उठाया तो सभी को वितरण कैसे हो सकता है? कई राज्यों में इसके बदले दी जाने वाली राशि भी बच्चों को नहीं मिली है।

राजस्थान में आदेश लेट आया इसलिए अब दो माह का राशन एक साथ बंटेगा

प्रभावित : 18.8 लाख बच्चों को खाद्यान नहीं

राजस्थान में जुलाई का राशन समय पर नहीं मिल पाया है। केंद्र से आदेश देर से आने के कारण अब जुलाई और अगस्त का राशन साथ बांटा जाएगा। इससे पहले की अवधि में जो राशन बांटा गया है वो भी 70% बच्चों तक पहुंचा है। 30% बच्चे प्रभावित हैं। राज्य में 62.65 लाख बच्चों को पोषाहार और मिड-डे मील दिया जाता है।

मिड-डे मील योजना की अतिरिक्त आयुक्त हेमप्रभा कहती हैं कि खाद्यान बच्चों के अभिभावकों को वितरित किया गया था। जिलों से इसकी रिपोर्ट मंगवाई जा रही है। इसके लिए बजट की कोई कमी नहीं है।

उत्तर प्रदेश में 20% को नहीं मिला मिड-डे मील, जुलाई का पैसा अब तक नहीं

प्रभावित : 36 लाख बच्चे

बेसिक शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश के अनुसार केंद्र से जुलाई और अगस्त का पैसा नहीं मिला है। इसलिए जुलाई का राशन और पैसा अभी नहीं दिया गया है। 30 जून तक की राशि से 80% बच्चों को लाभ मिल चुका है। उत्तर प्रदेश में 1.80 करोड़ बच्चों को इसका लाभ दिया जाएगा। लॉकडाउन अवधि व गर्मी की छुट्टियों के 76 दिनों के मिड-डे मील का राशन व कन्वर्जन कॉस्ट बच्चों को दी जाएगी।

बिहार में 1.19 करोड़ बच्चों को पैसा नहीं

प्रभावित : 49 लाख को नहीं मिला खाद्यान्न

यहां लगभग 1.19 करोड़ बच्चों को 4 मई से 31 जुलाई तक 80 दिनों की मिड-डे मील राशि नहीं मिली है। विभिन्न जिलों में लगभग 70 लाख बच्चों को ही इस अवधि का खाद्यान्न मिला है। एमडीएम निदेशक कुमार रामानुज ने कहा कि उत्तर बिहार के बाढ़ प्रभावित 16 जिलों में खाद्यान्न वितरण प्रभावित रहा।

वहीं, पिछले सप्ताह तक 8 जिलों में तो केवल 8% तक बच्चों को ही राशन दिया गया था। इन जिलों के जिम्मेदारों को नोटिस भी दिया गया है। बच्चों को 31 अगस्त तक मिड-डे मील की राशि दे दी जाएगी।

चंडीगढ़ में पैसों के लिए जुलाई की अप्रूवल आनी बाकी

प्रभावित : 92,396 बच्चे

यूटी एजुकेशन डिपार्टमेंट ने स्टूडेंट्स के बैंक खातों में मिड-डे मील का पैसा जमा करना शुरू कर दिया है। 30 जून तक का पैसा ट्रांसफर किया जा चुका है, लेकिन जुलाई का पैसा नहीं दिया गया। चंडीगढ़ में 114 गवर्नमेंट स्कूलों के 92 हजार 396 स्टूडेंट्स को मिड-डे मील दिया जाता है। यहां प्राइमरी लेवल पर एक दिन के खाने के 5 रुपए 22 पैसे और अपर प्राइमरी के एक दिन के 7 रु. 82 पैसे तय किए गए।

बड़ा सवाल यह है कि 5-7 रुपए में एक वक्त का खाना नहीं आता लेकिन एजुकेशन डिपार्टमेंट पूरे दिन के इतने दे रहा है। डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर हरबीर सिंह ने कहा-एक हफ्ते में फाइनेंशियल अप्रूवल मिल जाएगी और पैसा बच्चों के अकाउंट में ट्रांसफर हो जाएगा।

महाराष्ट्र में ऐसे मामले

स्कूल बंद तो गरीबी से परेशान घर वाले शादी करवा रहे, ऐसे 200 मामले

दीप्ती राउत, नासिक। चाइल्ड लाइन को 4 महीनों मे देश में 5,584 बाल विवाह की घटनाओं में हस्तक्षेप करना पड़ा। सोलापुर के जिला बाल संरक्षण अधिकारी विजय मुत्तर बताते हैं कि हम रोजाना ऐसे विवाह रोक रहे हैं। महाराष्ट्र में करीब 200 शादियां रुकवाई गई हैं। बच्चियां पढ़ना चाहती हैं लेकिन स्कूल बंद है और गरीब बढ़ी है।

त्रिपुरा सरकार ने केवल भोजन पकाने की राशि ही दी

प्रभावित : 4.32 लाख बच्चे

भास्कर ने मिड-डे मिल भत्ता के आदेश पत्रों को खंगाला तो पता चला कि त्रिपुरा में लॉकडाउन के दौरान छात्रों को केवल खाना बनाने के हिसाब से राशि दी गई जो प्रतिदिन 4.97 रुपए से लेकर 7.95 रुपए प्रतिदिन तक है। इसमें खाद्यान्न का पैसा नहीं दिया गया। राज्य में कुल 432,279 बच्चों को मिड डे मील दी जा रही है।

उत्तराखंड : बच्चों का 18 दिन का भत्ता ही गायब

प्रभावित- 1.38 लाख बच्चे

यहां 6.89 लाख बच्चे मिड डे मील के भरोसे रहते हैं। उत्तराखंड में लॉकडाउन के 66 दिनों में से केवल 48 दिन का भी मिड-डे मिल योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया गया। सरकार ने केवल 18 दिन का भत्ता ही नहीं काटा, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 20 फीसदी छात्रों को भत्ता ही नहीं दिया गया।

मिजोरम : 31 फीसदी बच्चों को नहीं मिला मिड डे मील

प्रभावित- 40 हजार बच्चे

उत्तर-पूर्व के राज्य मिजोरम के बच्चों को मिड-डे मील के तहत अप्रैल से लेकर जून तक 31 फीसदी बच्चों को राशि नहीं दी गई। इसी के साथ लॉकडाउन के दौरान मिड डे मिल पकाने की राशि मिलने का भी इंतजार है। राज्य में 1.31 लाख बच्चे मिड डे मील खाते हैं। पांच महीनों से मिड डे मील योजना प्रभावित चल रही है।

अन्य 4 राज्य : कुछ राज्य जैसे झारखंड, हरियाणा और छत्तीसगढ़ आदि के अधिकांश जिलों में फिलहाल मिड डे मील की स्थिति बेहतर है। पंजाब में पिछले हफ्ते मिड-डे मील का पैसा आ गया है।



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उत्तर प्रदेश में करीब 20% बच्चों को न तो मिड-डे मील का खाद्यान्न मिला है और न ही इसके लिए राशि, वहीं बिहार के 8 जिलों में 92% तक बच्चों को राशन नहीं दिया गया। (फाइल फोटो)


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